पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३२)

कालीन कवियो की भांति पिंगल और अलंकारो का ज्ञान नहीं था न इनके आधार पर उन्होने काव्य रचना ही की तथापि उनमे काव्यानुभूति इतनी प्रबल एवं उत्कृष्ट थी कि वे सरलता के साथ महाकवि कहलाने के अधिकारी हैं। सत्य यह है कि कविता मे छ्न्द, अलंकार, शब्दशाक्ति आदि गौण है, और संदेश प्रधान है। यही संदेश कबीर की कविता की विशेषता है। कबीर की कविता मे महान संदेशों की अभिव्यक्ति हुई है। सभ्यता और संस्कृति चाहे कितनी ही विकसित हो जाय पर कबीर के ये संदेश कभी न फीके पड़ेंगे न समय की गति मे पुराने (या आउट आफ डेट) पड़ेंगे। इन सन्देशो मे आनेवाली पीढ़ियो के लिये प्रेरणा, पथ प्रदर्शन तथा संवेदना की भावना सन्निहित है। महाकवि का यही दायित्व है कि वह अपनी सूक्ष्म दृष्टि के द्वारा आने वाली पीढियो को भावि मनोवृत्ति का आसानी के साथ अनुमान लगा ले और तदनुकूल साहित्य की रचना करे। कबीर मे यह शक्ति विध्यमान थी। अलंकारो से सुसज्जित न होते हुए भी कबीर के सन्देश काव्य-मय है। सच यह है कि काव्य की मर्यादा जीवन की भावात्मक एवं कल्पनात्मक विवेचना मे हैं, पिंगल मे नही। इस दृष्टि से कबीर एक अत्यधिक सफल कवि हैं। कबीर भावना की अनुभूति से मुक्त, उत्कृष्ट रहस्यावादी,जीवन का सवेदनशील सस्पर्श करने वाले और मर्यादा के रक्षक कवि थे। कबीर की काव्य कला का मूल्याकन परम्परागत पिटी-पिटाई रस, छन्द, अलंकार की कसौटी पर नही होना चाहिये। उन्होने स्वत: कहा है "तुम जिन जानो गीत है, यह निज ब्रह्मा विचार 'तथा' कवि ने कविता मुये। उनकी कविता का लक्ष्य मानव है। पथ-भ्रष्ट, मार्ग-विभ्रात जनता तथा समाज को उचित मर्ग पर लाना ही कबीर के पूरी पूरी विवेचना हमारे समक्ष प्रस्तुत करने मे असमर्थ हैं। कवि के रूप मे कबीर जीवन के अत्यन्त निकट हैं। उनके काव्या मे रीतिकालीन अचार्यो जैसी कलबाजी तो नही है पर निश्चय ही उनकी कला उनकी स्पष्टवादिता तथा स्वाभाविकता मे है। स्वाभाविकता कबीर के काव्य की सबसे बडी शोभा और कला की सबसे बडी विशेषता है। कबीर के काव्य का आधार स्वानुभूति या यथार्थ है। उन्होने स्पष्ट रूप से कहा कि "मैं कहता हूँ आंखिन देखी? तू कहता है कागद की लेखो" कबीर अत्याधिक प्रगति-शील कवि थे। कवि, चिन्तक, दार्शनिक, समाज सुधारक, धर्म सुधारक तथा रहस्यवादी के रूप मे वे अपने समय से बहुत आगे और सक्रिय थे। क्षमना, विद्रोह, विश्वबन्धुत्व की भावना ने हमारे कवि को बड़ा उदार और जनप्रिय बना दिया था। साराशं यह कि कबीर जन्म से विद्रोही, प्रवृत्ति से समाज-सुधारक कारणो से प्रेरित होकर धर्म-सुधारक, प्रगतिशील दार्शनिक और अवश्यकतानुसार कवि थे। सरल