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प्रान्थावली ] [७४९

        (11)आन न भावै -कुछ आलोचको ने 'आन' का अर्थ 'अन्य' करके इस 
      वाक्याश का अर्थ इस प्रकार विया है-मुभ्ते अन्य किसी की उपासना अभीप्सित
      नही है। हमारे विचार से "नोद न आवै"को साथ"आन न भावै" का अर्थ"अन्य
      अच्छा नही लगाता है,"ही अर्थ उपयुक्त होन चाहिए । समभाव की अभिव्यक्ति
      अन्यत्र देखिए-
               घान न भावै नींद न आवै,विरह सतावै मोइ।
                 खायल-सी घूमत फिरूँ दरद न जाणे  कोइ । (मीराबाई)
         (111)ज्यू कामी कौ वाम पियारा-तुलानात्मक हृष्टि देखिए-
              कामिहि नारि पियारि जिमी, लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
              तिमि  रघुनाथ   निरन्तर  प्रिय  लागहु  मोहि राम ।
                                                  (गोस्वामी तुलसीदास)
         (IV)है कोउ' 'सुनाइ रे - तुलना करें-
             प्रोतम कू पत्तियाँ लिखूँ  रे  कउवा !        ! तू  ले जाइ ।
             जाइ प्रीतम सू ये कहें ऱे, विरहणि धान  न  खाइ ।


           वेगि  मिलो  प्रभु  भ्रतर जामी , तुम बिन रह्यौ न जाई । (मीराबाई)
                       (३०५)
      माधौ कब करिहौ दया ।
         कांम  क्रोध अहंकार व्यापै , नो  छूटे  माया ॥ टेक ॥
         उत्पति ब्यंद भयौ जा दिन थे, कबहू सच नहीं  पायौ  ।
         पच चोर सगि लाइ दिए है, इन सगि  जनम  गंवायौ ॥ 
         तन मन डस्यौ भुजग  भांमिनी, लहरी  वार न  पाप  ।
         सो गारडू मिल्यौ नहो कबहू , पसरयौ विष  विकराला ॥
         कहै कबीर यहू कासू कहिये, यह दुख कोइ न  जानै ।
         देहु दीदार बिकार  दूरि  करि तब  मेर  मन  मांनै ॥
      शब्दार्थ - साँच=सुख । भुजग=सर्प । भमिनी=सुन्दरी । गारडू=सर्प 
      का जहर उतारने वाला । विकरारा=विकराल ,भयकर । दीदार=साक्षात्कार-
      दर्शन  ।
      सन्दर्भ -कबीर एक भक्त की तरह भगवान की तरह से दर्शन देने की
       प्रार्थना करते है ।
      भावार्थ-हे भगवान । आप मेरे ऊपर दया करके मुभ्कको कव दर्शन देगे ?
       काम क्रोध और अहंकार ने मुभ्कको घेर रखा है और माया मुभ्कसे छोड्ते नही
       वनती है । जिस दिन से विन्डु(पिना के वीर्य) से मेरा जन्म हुआ है,उस दिन से 
       मुभ्के कभी भी सच्चे सुख की प्राप्ति नही हुई है । पांच चोर (काम,क्रोध ,लोभ 
       मोह एव मत्सर)जन्म से भेरे साथ लगे हुए है। इनके  साथ मैंने अपना  सम्पूर्णा