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७५२ ] [ कबीर

कि क्या खरीदना चाहिए और क्या नही खरीदना चाहिए । कबीरदास कहते है कि तुम इस ससार रूपी बाजार में आकर तुमने लाभ का कुछ भी व्यापार नहीं किया अर्थात् तुम शुभ कर्मो को अर्जन बिल्कुल नही कर सकते ।

      अलकार- (1) गूढोक्ति- ले ' ' सवारि ।

(11) उपमा-जैसी धूवरि मेह, अगुरी की पानी । (111) रूपकातिशयोक्ति-सेंवल के फूलन । (1V) अनुप्रास- खोटी खार्ट खरा V) रूपक-हारि । विशेष- (1) प्रतीकों का प्रयोग है-खोटी, खरा, बनिज । (11) संसार की असारता का वर्णन है । (111) विषय-लिप्त जीव की भत्संना की गई हैं । (1V) धू वरि मेह । समभाव की अभिव्यक्ति देखे--- जग नभ-बाटिका रहीं है फलि फूलि रे । धुवां कैसे धोरहर देखि तू न भूलि रे ।

                             (गोस्वामी तुलसीदास)

(V) सेम्बर के फूलन । समभाव के लिए देखे--- सेमर सुअना सेइया मुह देंढी की आस ह। देंढी फुट चटाक दे सुअना चला निरास । (कबीर)

           ( ३१४ )

मन रे रांम मांमहि जांनि। थरहरी थू नी परयो मदर सूत्री खू टी तांनि ।।टेका । सैन तेरी कोई न समझे, जीभ पकरी आँनि । पाँच गज दोवटी माँगी, चूंन लीयौ सांनि ।। बसदर पावर हाँडी, चल्यौ लावि पलांनि । भाई बध बोलाई बहु रे, काज कोनों आँनि ।। कहै कबीर या मैं झूठ नांहों, छाडि जिय की बांनि । रमि नांम निसंक भजि रे, न करि कुल की कांनि ।। शबदार्थ- घरहरि=हिलती हुई । थूनी=खम्भा । सूतौ==सौता है । खूटी तानि=वेफिॠ के साथ । स न=इशारा । वन्सदर=अग्नि । पलानि=पलायन । सन्दर्भ- कबीर ससार की निस्सारता का वर्णन करते हैं । भवार्थ-रे मन, तू राम-नाम से अपना नाता जोड । इस शरीर रूपी मन्दिर का प्राण-रूपी आधार स्तम्भ हिलने लगा है । यह शरीर रूपी मन्दिर गिरने ही वाला है और तू निश्चिन्त होकर सो रहे हो अर्थात् तुम्हे मौत का ध्यान ही नही है । अन्त समय का वर्णन करते हुए कबीर कहते हैं कि तेरी जीभ की यमदूतो ने आकर पकड लिया है अर्थात तेरा बोल बन्द हो गया है तू अपना मन्तव्य प्रकट करने