पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४४१

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       विशेष-(I) वाहाचारा का विरोध व्यक्त है
       () जीवात्मा और परमात्मा का अभित्रत्त्र प्रतिपादित है। पृथकत्व भाव भ्रम है। इसकी निवृति द्वारा ही जीव का कल्याण सम्भव है। सूफी कवि कहते आए है-"इशरते कतरा है दरिया मे फना हो जाना।"
      () च्यातमणि-खोई। समभाव देखे-
            कस्तूरी कुण्डल बसै, मृग ढूढं बन मांहि।
            ऐसे घट घट राम है दुनियां देखे नांहिं।
      () विरला कोई जाने। तुलना करे-
      नर सहल महं सुनुहु पुरारी। कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी।
      धर्म सील कोटिक महं कोई। विषय विमुख बिराग रत होई।
      कोटि बिरक्त मध्य श्त्रुति कहई। सम्यक ज्ञान सकृत कोउ लहई।
      ग्यानवंत कोटिक महं कोऊ। जीवनमुक्त सकुत जग सोऊ।
      तिन्ह सहश्त्र महं सब सुख सानी। दुर्लभ ब्र्हा लीन बिग्यानी।
                                  इत्यादि-गोस्वामी तुलसीदास
                        (३१७)
     राम बिनां संसार धंध कुहेरा,
          सिरि प्रगटचा जामं का पेरा॥ टेक॥
         देव पूजि पूजि हिंदु मूये, तुरक मूये हज जाई
         जटा बांधि बांधि योगी मूये, इनमे किनहूँ न पाई॥
         कवी कवीनै कविता मूये, कापडी के दारौ जाई।
         केस लूंचि लू चि मुये बरतिया, इनसै किनहूँ न पाई॥
         धन सचते राजा सूये, अरू ले कंचन भारी।
         बेद पढें पढि पंडित मूये, रूप भुले मूई नारी॥
         जे नर जोग जुगति करि जांनै खोजै आप सरीर।
         तिनकू सुकति का ससा नाहीं, कहत जुलाह  कबीर॥
       शब्दार्थ- घघ=घु घ, घु ए का आवरण। कुहेरा=कुहासा, कुहारा।
    जाम=जम। पेरा=पेरने (दवाव डाल कर रस निचोडन) वाला यत्त्र, लक्षण से आरा अथवा ५,दा। हज=मक्के की यात्रा। कापडी=कायंटिक, तीर्थयात्री। लू चि लू चि=नोच-नोच कर। वरतिय=वत करने वाले, जैन साधु।
        संदर्भ-कबीर आत्मा साक्षात्कार का प्रतिपादन करते है।
        भावार्थ-भगवान राम की भक्ति के बिना यह संसार घुंघ और कोहरे के समान निस्सार है। भावार्थ यह है की राम भक्ति के अतिरिक्त अन्य समस्त साधनाएँ अज्ञान सशय एव दिरभ्रम मे डालने वाली है। मानव को समक्त लेना चाहिए कि यमराज का आरा उसके भिर के ऊपर निरन्तर लटकता रहता है। देवता पूज-पूज कर हिन्दु मर गये है, मुभलमान मक्का की यात्रा कर करके मर गये तथा योगी