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७६४] [कबीर
हिमकति करैं ह्लाल बिचारै, आप कहांवै मोटे। चाकरी चोर निवालै हाजिर, सांई सेती खोटे॥ दांइम दूवा कम्द बजावै, मै क्या करू भिखारी। कहै कबीर मै बंदा तेरा, खालिक पनह तुम्हारी॥ शब्दार्थ- पीर= मुसलमानो के धर्म गुरु, धर्मगुरु। पैगबर-पैगामवर , ईश्वर का दूत (मुह्म्मद साहब)। गदे=गदा ( फारसी) , भिखारी, रक निघन । दरिया = नदी। कमिबखत=दुर्भग्य । हिकमति=चिकित्सा, युक्तियाँ। ह्लाल= पशु हिंसा। मोटे=बडे । निवालै= भोजन के समय। साई= स्वामी। सेती=से, प्रति। खोटे= बुराई करने वाले। दांइम= दामन (अरवी शब्द), सदैव , उम्रभर। दूवा= छुरी,चाकू। दुवा= दुआ। बदा= सेवक । खालिक =सुष्टिकता। सन्दर्भ- कबीरदास भगवान से शरणागति की प्रार्थना करते है। भावार्थ- हे भगवान तू पवित्र और परमानन्द स्वरूप हो । घर्मगुरु और मोहम्मद साह्ब जैसे तैरे सदेश-वाह्क भी जब तेरी शरण मे रहते है, तब मुक्त गरीब भिखारी की तो गिनती ही क्या है? हे प्यारे परमानन्द , तुम दया की नदी स्वरूप होकर सबके ह्र्दय मे निवास करते हो। यह मेरा कैसा दुर्भग्य है कि मेरे ऊपर आपको जरा भी द्या दुषिट नही है । लोग दुसरो को उध्दार की युक्तियाँ बताते है और स्वय ह्रद्य मे हिंसा धारण करते है। एसे ही व्यक्ति बडे कहे जाते है। व्यक्ति भगवान की सेवा से जी चुराते है, अथर्त कर्तव्य का पालन ठीक तरह से नही करते है परन्तु भोजन के समय सदैव प्रस्तुत दिखाई देते है और इस प्रकार स्वामी के प्रति सदोष व्यवहार करते है।ये लोग उम्र भर दुआ मागते है और छुरी चलाते है ( हिसा करते है । इन्ही का सम्मान होता है)।इन लोगो पर मुभ्त भिखारी का क्या वश चल सकता है? कबीरदास कहते है कि मैं तो सेवक हुँ। हे सुजन हार , मैं तुम्हारी शरण मे हूँ- मेरे ऊपर अनुग्रह कर दीजिए । अल्ंकार - (१) अनुप्रास - पीक पैकवर पनह। (२) छेकानुप्रास- पाक परमानन्दे, दरिया दिल चाकरी चोर साई सेती ,दाइम टूवा, हिकमति ह्लाल । (३) वक्रोति-मै .....गदे? (४) श्लेप पुष्ट रूपक ...दरिया। (५) गुढोक्ति - क्या .... हमारे। (६) विपम - चाकरी उजावै। विशेष- (१)ध्रर्म के ठेकेदारो के प्रति करारा व्यग्य है। (२) इस पद मे कबीर ने काजी- मुल्लाओ के मास भक्षण के प्रति अपना अक्रोश व्यक्त किया है। (३) फारसी - अरवी के शब्दो के प्रयोग ने भावाभिव्यक्ति को स्व्ंय स्वाभाविक बना दिया है।