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को प्रकट किया। देखने मे विषय लघु है पर ये मानव जीवन का व्यापक रूप से स्पर्श करते है ।

कवि कबीर की अभिव्यंजना शैली बड़ी शक्तिशाली, समर्थ और प्रभावशाली, है। पतिपाद्य के एक-एक अंग को लेकर अशिक्षित, निरक्षर, संस्कारविहीन, पर परम्पराओं के प्रभाव से विहीन इस कवि ने सैकड़ो साखियों की रचना की है। आश्चर्य की बात यह है कि प्रत्येक साखी मे अभिनवता है, यद्यपि प्रतिपाद्य वही है।

साखियों में समान रुप से विद्यमान है । रमणीयता और अभिनवता जो काव्य की परिभाषा के अंग है कबीर के काव्य में सवंत्र विद्यमान है । कबीर ने ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, योग, हठयोग, जैसे दुरुहतम विषयों को अपनी अभिव्यंजना शैली के माध्यम से बड़े सुबोध एवं सरल रूप में व्यक्त कर दिया है । माया, आशा, तृष्णा आदि विषयों का बड़े रोचक ढंग से रहस्योंद्घातन किया है । चेतावनी को अग "अध्ययन करते जीवन और मृत्यु, सृष्टि और विनाश, ब्रह्म और जीव जैसे विषयों को कबीर ने अपनी अभिव्यंजना शैली के द्वारा इतना सुबोध बना दिया है कि शिक्षित और अशिक्षित समान रूप से उनके उपदेश और संकेतों को ग्रहण कर सकता है । लगभग ५०० वर्षों से जो कवि निम्न और अशिक्षित वर्ग का पथ प्रदर्शक और घर्म सुधारक माना जाता था आज उच्चतम उपाधियों के लिए अनुसंधान का रहस्य बना हुआ है । कबीर की अभिव्यंजना शक्तिश की विशेषताएँ है सरलता, सुबोधता, सहजता, अभिनवता और प्रभावित करने की अद्वितीय शक्ति उनकी वाणियों मे साहित्यिक अभिव्यक्ति हुई है । उदाहरणार्थ कतिपय साखियाँ यहाँ उद्पृत की जाती है-

( १ )

बुरा जो देखन मैं चला जग में बुरा न कोय ।
जो दिल खोजा आपना मुझ सा बुरा न कोय ।।

( २ )

चुन चुन चिड़िया महल बनाया लोग कहें घर मेरा है
न घर मेरा न घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा है ।।

( ३ )

देखन के सबको भले जिसे सीत के कोट ।
रवि के उदै न दीसही, बाँधे न जल की पोट ।।