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७६८ ] [ कबीर

            अल्ंकार- (१) विरोधाभास - मन की      परहरि । व्यंज   तहां ।    
                    (२) विभावना की व्यजना - जहां पछांणि । जहां  लागि ।
                    (३) सदेह की व्यजना - नादहिं   नाद ।
                    (४) सभग पद यमक - व्यद गो व्यंद । नादहिं नाद ।
                    (५) उपमा - गुणतीत जस आप ।
                    (६) रूपक - भ्रमजेवणी   साप । परिहरि   डाटि ।
                    (७) अतिशयोत्ति - वार न पार ।
                    (८) पदमैत्री - निरखि देखि, वार न पार ।
               विशेष- (१) नाथ सम्प्रदाय के प्रतीको का वर्णन है ।
                (२) कायायोग की प्रक्रीया का वर्णन है उसके माध्यम से ज्ञान, उपासना 
              एव भक्ति का समन्वय प्रस्तुत किया है ।
                (३) नाद सुक्ष्म जीव तत्व है औरु बिन्दु सुक्ष्म शरीर तत्व है । 
                (४) व्यष्टि की चेतना का विश्व चेतना मे पयंवसान ही साध्य है । इसी का 
         प्रतिपादन है ।
                               (३३७)
            अलह अलख निरंजन देव, 
                   किहि गिधि करौं तुम्हारी सेव ॥टेक॥
            विश्व सोई जाको विस्तार, सोई कृस्न जिनि कीयौ ससार ।
            गोब्यद से ब्रम्हांडहि गहै, सोई रांम जे जुगि जुगि रहै ॥
            अलह सोई जिनि उमति उपाई, दस दस खोलै सोई खुदाई ।
            लख चौरासी रब परवरै, सोई करोम जे एती करै ॥ 
            गोरख सोई ग्यांन गमि गह, महादेव सोई मन की लहै ।
            सिध सोई जो साधै इती, नाथ सोई जो त्रिभुवन जती ॥
            सिध सोई जो साधू पैकंवर हूवा, जपै सु एक भेष है जुवा ।
            अपरंपार का नांउ अनत, कहै कबीर सोई भगवान ॥
              शरब्दार्थ-अलह= अल्लाह ,अलभ्य । 'अलख' एव्ं 'निरजन' के 
         सदर्भ मे 'अलभ्य' ही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है । अलख =अलक्ष्य । 
         निरजन=माया रहित । उमति=उम्मत=सम्प्रदाय । रव= परमेश्वर, पालन पोषण 
         करने वाला । 
            संदर्भ- कबीरदास नामो की विभिन्नता बताते हुए ब्रम्हा की एकता का प्रतिपादन 
        करते हैं । 
          भावार्थ- हे अलभ्य, अलक्ष्य तथा मायारहित भगवान । मैं आपकी सेवा किस प्रकार 
        करू? विष्णु वही है जो सवंत्र व्याप्त है, कृष्ण वही है जिसने सारे संसार की मृष्टि की                   
        है, गोविन्द वही है जो ज्ञान से ब्रम्हाण्ड को ग्रहण करता है, राम वही है जो युग 
        युगान्तर तक व्याप्त है । अल्लाह वही है जिसने पैगवर के नाम पर सम्प्रदाय उत्पत्र 
        किया । जो इस शरीर के दस द्वारो (अथवा दसभ द्वार ब्रम्हारन्ध्र)