पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४५४

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ग्रन्थावली ]

को खोलकर ग्यान प्रधान करता है,वही 'खुदा' है। जो चौरासीलाख योनियो का पालन पोषण करता है,वही वास्तव मे 'रब'(ईश्वर) है। इतनी उदारता दिखाने वाला ही करीम(दय करने वाला) है।गोरख वही है जो ग्यान द्वारा प्राप्त तत्व को साक्शत्कार कर लेत है। जो मन की बात को अन्तर्यामि होकर ग्रहण करता है,वही महदेव है।सिद्ध पुरुश वही है जो साध्न द्वारा इतने तत्वो को जानता है।'नाथ' वही है जो त्रिभुवन (सर्वग्य) यती(सयतेन्द्रिय) बन कर रह्ता है।सिद्ध,साधु,पैगम्बर आदि जो भी हुए है,वे सब एक ही तत्व का जप करते है।उसके भेष तो भिन्न भिन्न रहे है अतार्थ ये भेद तो बाहरी आडम्बर मात्र है। वह तत्व अपार है और उसके अगणित काम है।कबीर कह्ते है कि अनेक कामो द्वारा अभिव्य्क्त वह एक परम तत्व ही भगवान है।

    अलंकार-(१)छेक्रनुप्रास-अलह,अलख,विष्णु विस्तार दस दर ।
           (२)पुनरुक्तिप्रकाश-जुगि श्रुगि ।
           (३)व्रत्यानुप्रास-सिध साई साधेै ।
           (४)एक हि तत्व के अनेक नाम ।
           (५)परिकांकुर - कई नाम साभिप्राय है,जैसे अलह,अलख,करीम।
   विषेश -(१) विष्णु आदि विभिन्न भगवान न होकर विभिन्न तत्व है। यह है कबीर की वैज्ञानिक बुद्धिवादि द्रिष्टि ।
       (२)परामत्मा मायारहित है।जीवन की क्रियाएँ माया द्वारा आवद्ध य समीम है।इसी से परमात्मा की सेवा स्ंभव नही है। उसका तो ध्यान मात्र ही किया जा सक्ता है।
               जो जह्न मे आगया,वह खुदा कैसे हुआ?
      (३)उस एक परम तत्व के ही विभिन्न कार्यो के कारण विभिन्ना है।एक ही व्यक्ति पिता,पुत्र,चाचा भाई आदि कहा जाता है।
     (४)अद्त्वाद क सुन्दर प्रतिपादन है।
     (५)इस पद मे कबीर ने विभिन्न सम्प्रदयोंं मे भग्वान के लिये प्रयुक्त होने वाले विभिन्न कामो के मूल मे रह्ने वाली भवना क उद्घाटन किय है।वे भगावान के विभिन्न गुणोँ के बोधक शब्द है। जो जिस गुण का साक्शात्कार कर लेता है,वह उसी के आधार पर भगवान का नामकरण कर लेत है। इस प्रकार वे विभिन्न नाम इन गुणो की उपाधि से उसी एक तत्व के व्यजक है। प्रत्येक नाम के द्वार उसी एक ही तत्व की उपासना ही वास्तव मे सच्ची उपासना जहै। शेप केवल साप्रदायिक आदम्बर मात्र है।इस प्रकार कबीर ने बोद्धिक द्र्ष्टि से एवं दार्श्निक आधार पर समस्त सम्प्रदाय के उपास्य एव्ं उपासना मे तात्विक अभेद स्थापित किया है।