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ग्रान्थावली] [

पर ज्योति का प्रकाश भी है। सहज रूप से शून्य मे प्रतिप्ठित रहने वाला यह चैतन्य-स्वरूप तत्व टस से मरा नही होता है और न उसका है और न उसका आवागमन ही होता है ।न तो उसे वण॔हीन कहा जा सकता है अौर न उसका कोई वर्ण (रग) ही बताया जा सकता है अथा॔त् वह वण॔नातीत है। वह न काला है ,न पीला है। वहा पर न हा -हू(शोरगुल)है और नगीत-नाच ही है। अथा॔त् वहा पर लौकिक शब्द नही होता है। वहाँ पर अनाहद नाद की मधुर भकार होती है। वही पर समर्थ एव सारभूत तत्व भगवान विराजवमान है। कदली पुष्प के समान हृदय-कमल मे उस दीपक स्वरूप ज्योति का प्रकश है। हृदय-कमल मे स्थित अनाहद चऋ के बारह पंखडी वाले कमल के भीतरी भाग पर ध्यान केन्द्रित करो और उसी का चिन्तन करो। वही तुमको प्रभु का साक्षात्कार होगा। वहाँ न अपवित्रता, न छूप है, न छांह है, न दिन है न रात है, वहा न सूर्य का उदय होता है और न चन्द्रमा ही उदित होता है। ऐसे स्थल पर वह आदि निरजन पुरुष आनद पूवंक निवास करता है। जो कुछ ब्रह्माण्दड मे है उसको पिण्ड मे जान लो। इस अभॆद-ज्ञान रूप मुक्तावस्था को प्राप्त करके जो आत्मा-स्वरूप रूपी मानसरोवर मे सनान करत॓ है, निमग्न हो जाते है और ज्ञान स्वरूप होकर सोह(जीव-ईश्वर के अभोद द्वरा व्यञित चैतन्य) का शाशवतBold text ध्यान करते है, वे पाप-पुण्य से लिप्त नही है अर्थात वे कम॔-वन्धन से परे हो जाते है। शरीर मे उस परम तत्व को विराजमान जानकर, जो राम का नाम बोलता है वह आत्म-स्वरूप हो जाता है। कबीर कहते है कि जो व्यक्ति उस परम ज्योति मे मन को हढतापूर्वक लगा देते है अथवा जिनका मन अविचल भाव से इस परम ज्योति मे लग जाता है,वे इस भवसागर से पार हो जाते है।

     अलंकार-(१)रूपकतिश्तयोक्ति-प्राय सम्पूण पद मे नाथ पथ के प्रतीको का प्रयोग हुआ है।
           (२)सभग पद यमक-अबरन वरन,अमलिन मलिन,
           (३)पदमंत्री-अबास परकास, अगम निगम, अरध उरध। म्यत च्यत।
           (४)वृत्यानुप्रास-अगम अगोचर आभिअतरा, सहज सुनि समाइ, भाहन गावै गीत। 
           (५)सम्वन्धातिप्रायोक्त-पार न-धरणीधरा।
           (६)विशेषोक्ति-टारयोटार्र्यौ टरै न। 
           (७)छेकानुप्रास-टारयो टरै। समरय सार,
           (८)रुपक-रिदा पकज। मानसरोवर।
     विशेष-(१) परम तत्व को इन्द्र्यातीत एव वर्ण्नातीत बताया है। वह लौकिक वाणी के प्रतीत है।
         (२)तार अनत-प्रतीथमान विरोधो का वहा सामजस्य है।