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ग्रन्यावली ] [ ७७५

सुप्पनै बिद न देई झरनों, ता काजी कू" जुरा न मरणां ।। सो सुलितांन जुई सुर तांनै, बाहरि जाता भीतरि आने ।। गगन मंडल मैं लसकर करे, सो सुलितांन छत्र सिरि धरै ।। जोगी गोरख गोरख करै, हिंदू रांम नाम उच्चरै ।। मुसलमांन कहै एक खुदाइ कबीरा की रुवांमी घटि घटि रह्यरै समाइ 1।

     शब्दार्थ … हजूरि = समीप । दुदर=द्र८द्व, भेदभाव । बाघ= मे करले,

अपने नियन्त्रण में करले । मुलना=मुस्ता, मसजिद में नमाज पढाने वाला । विद न देई झरना ८८=काम के वशीभूत न होना । जुटा =जटा, वृद्धावस्था । सुलतान= बादशाह । लसकर=लशकर, सेना ।

    सन्दर्भ--कबीर पैगम्बरी मुसलमानों को उनकी सकुचिंत वृति के प्रति

सावधान करते हैं ।

    भावार्थ-रे मुल्ला, वह भगवान तो तेरे पास है । तुम उसको दूर (सातवें

आसमान पर) क्यों बताते हो? जो अंहकार जन्य भेद-भावना पर नियत्रण कर लेता है अर्थात् सम्प्रदाय-भावना के परे हो जाता है वहीं उस सुन्दर परम तत्व का साक्षात्कार करता है । असली मुल्ला वही है जो अपने मन के विकारों से सघर्ष करता है और रात-दिन काल चक्र से लडता है अर्थात मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है । जो काल चक्र का मान नष्ट कर देता है अर्थात मृत्यु (मृत्यु के भय) को जीत लेता है, वह मुल्ला सदैव वदनीय है । वास्तविक का़ज़ी वही है जो अपने शरीर से विघमान का चिन्तन करता है और इस प्रकार रात-दिन ज्ञानारिन को प्रज्वलित करता रहता है । जो काजी स्वप्न में भी वीर्यपात नहीं होने देता अर्थात् कभी भी काम के वशीभूत नही होता है, उसको न वृद्धावस्था सताती है और न मृत्यु ही उसको व्यापती है । वास्तविक बादशाह वहीं है जो अपने स्वास प्रश्वास रूपी दो स्वरों को नियत्रित रखता है और बाहर जाते हुए प्राणी को पूरक एव कुम्भक द्वारा भीतर ले जाता है, इस प्रकार नाव को ऊद्धर्व गति देते हुए युध्द करता है । वही सुलतान सिर पर छत्र धारण करता है, अर्थात राज्य का अधिकारी बनता है, जो शुन्य मंडल मे जाकर अपना डेरा डाल देता है अर्थात् अपनी चेतना को व्रह्यरन्नघ्र में स्थित कर देता है । गोरखपथी योगी 'गोरख' जपता है, हिन्दू राम-नाम का उरुचारण करता है, मुसलमान कहते हैं कि उनका खुदा ही एक मात्र परमात्मा है, परन्तु कबीरदास कहते हैं कि उनका स्वामी (भगवान) प्रत्येक घट से समाया हुआ है अर्थात् वह सर्वव्यापी है 1 अलका:---") गुपपक्त---है--बतावै ।

      (11)पदमैनी -दु दर सुन्दर,
    (111) रूपकातिशयोक्ति-सुर, लसकर
      (क्या) यमक-गोरख गोरख,
        (रा) पुनरुक्ति= घट घट