पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४७०

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ग्र्न्थावली] [७८५ हैं, जिनके दरबार मे करोडो यज्ञ होते रहते हैं तथा करोडो गधर्व जिनका जय-जय-कार करते हैं। कारोडों विधाता जिनका गुणगान करते रहते हैं, उस परम ब्रम्ह का किसी ने भी पार नही पाया है। उनके लिए करोडो शेष नागो ने सेज बिछा रखी है। और करोडो पवन उनके महल मे हवा करते हैं करोडो समुद्र उनके यहाँ पानी भरने वाले हैं, अठारह वनराजी जिनकी रोमावली हैं, जिसके असख्य करोडो यमो की सेना है, जिनसे रावण की सेना भी पराजित हुई है, जिसने सहस्त्रबाहु के प्राणो का हरण किया था, और दुर्योंधन,को जिसने क्षयमान करके नष्ट कर डाला था, बावन करोड जिसके कोटपाल है और नगरी-नगरी मे जिसके क्षोत्रपाल है जिनकी विकराल लटें(मेघों के रुप मे) भयकर नृत्य करती हैं। वह राम अनन्त कला से युत्क नटवर गोपाल हैं, करोड कामदेव उनका सौन्दर्य प्रसाधन करते हैं और उसी से घट-घट मे रहने वाली इच्छाओ को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। कबीरदास उन्ही घनुषधारी राम का भजन करते हैं और उनसे अभय पद के दान की याचना करते हैं। अलंकार-(१)व्यत्किरेक एव आतिशयोत्कि-पूरा पद। विशेष-यह सगुण भत्को की सी प्रार्थना है। इसमे प्रभु के विराट-दर्शन जैसी भ्तॉँँकी प्राप्त होती है। (११) समभाव के लिए देखें-

              रूद्रादित्या वसवोयेच साध्या।
              विश्वेस्शिवन मरुताचोहम पाश्च।
              गन्धर्व यक्षासुर सिध्द सौघ्या।
              वीक्षन्ते त्वा विस्मिताचैव सर्वे।  (क्षीमद्रभगवद्गीता)

उदर माभ्क सुनु अंडज राया। देखेउं बहु ब्रह्मांड निकाया। अति बिचित्र तहै लोक अनेका। रचना अधिक एकते एका। कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा । अगनित उडगन रबि रजनीसा। अगनित लोकपाल जम काला। अगनित मुधर राम बिसःला। सागर सरि सर बिपिन अपारा। नाना भाँति सृष्टि विस्तारा।

                                इत्यादि (रामचरितमानस)

जाके विलोकत लोकप होत विलोक, लहैं सुर-लोग सु-ठौरहि। सो कमला तजि चंचलता करि कोटि कला, रिभ्कवै सुर मौरहि। ता को कहाय, कहैं तुलसी, तू लजाहि न मॉँँगत कूकुर-कौरहि। जानको जीवन को जन है जरि जाऊ सो जीह, जो जॉंचत औरहि। तथा-जग जाचिए कोउ न जाँचिये जो जिय जाँचिए जानकी जानहि रे। जेहि जाँचत जाचकता जरि जाहि जेहि भारत जोरि जहां नहिरे।

                             (कवितावली- गोस्वामी तुलसीदास)