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ग्रन्थावली ] [७८७

              (३४२)
   भलै नीदौ भलै नीदौ भलै नीदौ लोग,
               तन मन रांम पियारे जोग ||टेक ||
   मैं बौरी मेरे रांम भरतार, ता कारनि रची करौं स्यगार ||
   जैसे धुबिया रज मल धौवै, हर तप रत सब निंदक खोवै ||
   न्यंदक मेरे भाई बाप, जन्म जन्म के काटे पाप ||
   न्यंदक मेरे प्रांन अधार, बिन  बेगारि चलावै भार ||
   कहै कबीर न्यदक बलिहारी, आप रहै जन पार उतारी ||
   शब्दार्थ - नीदौ = निदा करो |  बौरी= पागल | रज= मिट्टी | हरत-परत= विभिन्न प्रयत्नों द्वारा |  वेगारि= मज़दूरी |
   सन्दर्भ- कबीरदास निंदक को साधक का उपकारी बताते हैं | 
   भावार्थ- ईश्वर के प्रति दाम्पत्य भाव मे तन्मय आत्मा सुन्दरी कह रही है कि भले ही मेरी निंदा
   करो ,भले ही मेरी निन्दा करो, लोग भले ही मेरी निंदा करो | मेरे तन और मन प्यारे राम       के सयोग अनुरक्त रेहते हैं | राम मेरे  पति हैं और मैं उनके पीछे पागल हूँ | उनको रिझने के   लिए मैं अच्छी तरह रुचि पूर्वक श्रृंगार करती हूँ | जिस प्रकार  धोबी कपङों के मैल मिट्टी को धोता है, उसी प्रकार निदा करने वाला व्यक्ति विविध प्रकार से निदा करके भगवान की तपस्या में लगे हुए साधक के समस्त अवगुणों को दूर कर देता है | 
   निंदक को मैं माता-पिता की भाँति अपना हितैषी मानता हूँ क्योंकि वह जन्म जन्मान्तार के पाप
   दूर कर देता हैं | निंदक मुझे प्राणों के समान प्रिय है क्योंकि वह बिना किसी प्रकार का 
   पारिश्रमिक लिए ही मुझे अवज्ञा का भार सहन करने योग्य बना देता हैं | कबीरदास केह्ते है 
   कि मैं निन्दक पर बलिहारी जाता हूँ | वह स्वयं तो भवसागर में रह जाता है और भक्त जन
   को भवसागर के पार उतार देता है |
   अलंकार- १) पुनरुक्ति प्रकाश - प्रथम पंक्ति | जनम जनम |
   २) उदाहरण- जैसे - खोवै |
   ३) उल्लेख- निंदक का विभिन्न रूपों में वर्णन |
   ४) विभावना की व्यजना - बिन बेगारि - भार | 
   ५) व्याज स्तुति - सम्पूर्ण पद |
   विशेष- १) इस पद मे व्याज स्तुति द्वारा दिखाया गया है कि निदा पाप कर्म है एवं बन्धन
का हेतु है | 
  २) निंदा के प्रति सहिष्णू व्यक्ति अपने दोषों के प्रति जागरुक हो जाता है और अपने अवगुणों
को क्रमश दूर करता रहता है | रहीम ने भी इसी प्रकार का कथन किया है | 
         निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाइ|
         बिन पानी सावु़न बिना निरमल करै सुभाइ |