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ग्रन्थावली] [७६१

         ३)पुनरुक्ति प्रकाश- फिरि फिरि,करि करि।
         ४)पर्यायोक्ति- नाहिन राम अयाना।
         ५)विरोधाभास-हरि को दास तिराई।
         ६)सवाधातिशयोक्ति-पाठ  सुमृत ।

विशेष-१)वाह्याचार का विरोध स्पष्ट है।

२)जल के मजन्ये नहाव समभाव देखे।
    प्ंडित!वाद वदै सो भूंठा।

राम कहयां दुनिय्ॉ गाति पाचै,(तौ) खॉड कहयाँ मुख मीठा । विनु देखे बिना अरस-परस विन,नाम लिए का होई ?(कबीरदास)

 ३)हिरदै कठोर-इसका अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है -जो हृदय 

कठोर करके काशी-करवठ लेते हैं । इसका पाठातार भी इस प्र्कार मिलता है-काशी करोत लेते हैं१)

४)मरै जे मगहरि-'मगहर'आदि स्थानो को पौराणिक परम्परानुसार अशुभ स्थल माना जाता है। यह प्रवाद प्रचलित है कि जो कोई मगहर मे मृत्यु को प्राप्त होता है,वह नरक का भोग करता है। कबिर इस मान्याता को अन्ध विशवास मानते थे और इसी कारण उन्होने इसके विरुध आवाज उठाई थी। प्रसुतुत पद मे वह मगहर मे शरीर त्याग से स्वर्ग लाभ कि बात करते हे। स्पष्टत यह एक अंध विशवास को एक अन्य अन्ध विशवस के द्वारा मिटाने का प्रयन्त है। यदि मगहर मे मरने पर नरक नही मिल सकता है,तो वहाँ मरने पर स्वर्ग की प्राप्ति क्यो कर सम्भव होगी ॽसूधारक गण अंद िव१वास के शिकार बन जाते हैँ। ऐसे व्यक्तियो के विशय मे यह उक्ति सव॔था सगत है क़ि शिकार बन जाते हैं।ऐसे व्यक्तियो के विषय मे यह उक्ति सव॔ता सगत है कि "जिन लोगो ने कुडा साफ करना चाहा था,उनके नाम के कई धूरे और बढ गय हैं।" 

बात यह है कि शकराचार्य ने जब बौध्दा को आर्याक्त से खदेडा, तो उन्होने अप्ने अड्ड बिहार मे स्थापित क्र लिए और वहाँ उन्होने वामाचार फैलाया इसी कारण वैदिक मतानुयायी महानुभाव मगध (बिहार)प्रदेश को उपेक्षा की हष्टि से देखने लगे थे। थथा-

               लागाहिं कुमुख वचन सुम कैसे।मगहँ गयादिक तीरथ जैसे 
                                   (रामचरितमास,गोस्वामी तुलसीदास)

५)मरे बनारसि- सामान्य यह विशवास है कि काशी (बानारस वाराणसी)शिवजी के त्रिशुल के ऊपर बसी हुई है। वहाँ मरने पर स्वर्ग कि प्राप्ति होती है। अत: वहुत से व्यक्ति अन्य समय मे काशी वास केरके के इच्छुक रहते हैं। सम्भवत:इस पद मे काशी करवट की और सकते है। काशी के एक कुएँ मे आरा लगा हूआ था। अंध विशवासी जनता उस कुएँ मे गिरकर अपने