पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४७९

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  सेवग सो जो लागै सेवा ,तिनहीं पाया निरजन देवा ॥
  गुर मिलि जिनि के खुले कपाट,बहुरि न आवै जोनीं बाट ॥
  यहु तेरा औसर यहु तेरी बार ,घट ही भीतरि सोचि बिचारि ॥
  कहै कबीर जीति भावै हारि,बहु विधि कह्मौ पुकारि॥
शब्दार्थ -मनिखा =मनुष्य ।लाहु=लाभ ।लौचौ=ललकते है,चाहते है ।जुरा =व्रद्धावस्था ।हीण =हीन ,दुवंल ,क्षीण ।सारग पाणी=हाथ मे घनुष धारण करने वाला ,श्री राम ।जोंनी वाट =जन्म के रास्ते ।
     सन्दर्भ -कबीरदास भगवद भक्ति करने के लिए पुकार -पुकार कर कहते है|
   रे मानव ,तुम भगवान का भजन करो |इस वात को भुल मत जाओ |मनुष्य जन्म का यही लाभ है |जब तुम्हे मानव शरीर प्राप्त हो गाया है ,तो इससे गुरू की सेवा करो और प्रभु-भक्ति का उपार्जन करो |जिस मानव शरीर के देवता भी अभिलाषी है,वह तुम्हे प्राप्त है |इस मानव शरीर के द्वारा भगवान की सेवा करो |जब तक तुमको व्रद्धावस्था सम्वन्धी रोग नही घेरते है ,इस शरीर को काल नही ग्रसता है और तुम्हारी शन्ति क्षीण नही होती है,उससे पहले मन को भगवान राम के भजन मे लगा दो |यदि तुम अब (शरीर के स्वस्थ रहते हुए )भगवान का भजन नही करोगे तब फिर हे भाई तुम उनका भजन कब करोगे?

अतकाल आने पर तुमसे भगवान का भजन नही किया जा सकेगा |इस समय जो कुछ कर लोगे ,वही सार है-वही तुम्हारी सच्ची कमाई है |इस समय भाजन करने पर तुमको बाद मे ऐसा घोर पश्चाताप होगाअ जिसकी कोई सीमा नही होगी|सच्चा भक्त वही है जो भक्त भक्ति मे लग जाए |जो अविलम्ब (अभी और कही)प्रभु -भक्ति मे लग जाते है ,उन्ही को माया रहित प्रभु (निरजन ) की प्राप्ति होती है|सदगुरु के साक्षात्कार (गुरु के उपदेश )द्वारा जिनके ज्ञान -कपाट खुल गए है,जिन्हे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है ,वे फिर इस जन्म -मरण के चक्कर मे नही पडते है|हे मनुष्य |तुम्हे स्वर्ण् अवसर प्राप्त हुआ है|मोक्ष -साधन के लिए यही तेरी बारी है-चोरासी लाख योनियाँ भोगने के वाद 'साधन -घाम मोक्ष कर द्वारा'मानव शरीर मे आने को तुम्हारी बारी आई है|इस बात को तुम अपने मन मे अच्छी तरह सोच -समझ लो |कबीर कहते है कि राम भजन के द्वारा मोक्ष प्राप्त करक्रे चाहे तो तुम अपनी इस वारी (दाँव)को जीत लो अथवा भजन की उपेक्षा करके और मोक्ष को ग्ँवाकर इस दाँव को हार जाओ |कबीर कहते है कि मैंने तो बार -बार पुकार कर तुम्हे चेतावनी देकर अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया है

       अल्ंकार -(१)गूढोक्ति-  भजसि कब भाई |
              (२)पदमैत्री-   सार वार पार |
              (३)रुपकातिशायोक्ति-कपाट|
              (४)रूपक --जोनो वाट|
              (५)पुनरुक्ति प्रकाश-पुकारि पुकारि|