पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४८३

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शब्दार्थ - बटपारै = बटमाश,लुटेरे । पहा = पथ । मोटा = बडा । सत = श्वेत । डड = डंडा ।

संदर्भ- कबीर जीव को मोह निद्रा का त्याग करने को कहते है ।

भावार्थ- रे मानव, तुम जाग जाओ, इस अज्ञान-निद्रा मे क्यों सो रहे हो? यमरूपी लुटेरे ने तुम्हारे जीवन-पथ को रोक रखा है । ( वह चाहे जब तुम्हे लूट लेगा ) । जागकर तथा सचेष्ट होकर अपने जीवन के सरक्षण का कुछ उपाय करो । यमराज तुम्हारा बहुत बडा शत्रु है। तुम्हारे इस जीवन रू पी वन मे श्वेत वाल रूपी श्वेत काग आगए हैं,जो तुम्हारे नाश के सूचक है । हे मानव तुम अब भी सावधान क्यो नही होते हो? कबीर कहते है कि मानव तब होश मे आता है जब यमराज का डडां सिर पर बजने लगता है ।

अल्ंकार - (१) गूढोक्ति - सोवहु कहा ।

       (२) रूपक - जम वटपारै ।
       (३) रूपकातिशयोक्ति - सेत काग, वन ।

विशेष - (१) डड मूड मैं लागै -लोकोक्ति का प्रयोग । (२)वन मे स्वेत कौओ का आना अत्यन्त अशुभ माना जाता है। वह नाश-सूचक होता है।


जाग्या रे नर नींद नसाई,

चित सोवत बहुत दिन बीते, जन जाग्यां तसकर गये रीते।

जन जागे का ऐसहि नांण, विष से लागै बेद पुरांण ॥

कहै कबीर अब सोवौ नांहि, राँअ रतन पाया घट मांहि ॥

शब्दार्थ - नसाई = नष्ट करके । च्यतामणि = रामनाम रूपी चितामणि ।

तसकर = चोर, लुतेरे । रीते = खाली हाथ । नाण = लक्षण ।


संदर्भ - पूर्व पद के समान ।

भावार्थ - रे मानव, अज्ञान की नींद समाप्त करके अब जाग जाओ । मन मे विवेक धारण करो । तुमको भगवन्नाम रूपी चिन्तामणि की प्राप्ति होगी । तुम्हे इस अज्ञान-निद्रा मे सोते हुए बहुत समय ध्यतीत होगया है । मानव के जगते ही काम-क्रोधादि रूपी चोर खाली हाथ ही भाग जाते है। जागे हुए (ज्ञानी) मनुष्य का यही लक्षण है कि उसे वेद-पुराण भी विप के समान (व्यथ)प्रतीत होने लगते हैं। कबीर कहते हैं कि मुझे तो अपने अन्त करण मे राम-नाम रूपी रत्न की प्राप्ति होगई है। अब मैं तो अज्ञान के वशीभूत होकर नहीं सोऊँगा ।

अलंकार - (१) अनुप्रास - नट नीद नसाई । चित चेत्यो च्यतामणि । (२) रूपकातिशयोक्ति - च्यतामणि । (३) पुनरिक्ति प्रकाश -सोवत मोवत ।