पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५०१

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हमको भी एक दिन जान ही है। है मानव ' यह जीवन अंधेरी रात्रि के समान है। तू जग जा। तेरी समरत सगी साथी तुम से बिछुडने लगे है। इस जगत मे कौन किसका भाई है और कौन किसकी स्त्री है? जीव को अकेले ही जाना पडता है। कोई किसी के साथ नही जाता है। सारे महल गिर कर नष्ट हो गये, इनमे रहने वाले परिवार समाप्त हो गये , तामाब सूख गये और उन पर रहने वाले हम भी उड