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यनयाली ] [ ८२६
प्रह्लाद पधारे पढ़न साल। संग सखा लीवै बहुत बाल॥ मोहि कहा पढावै आल जाल, मेरी पाटी मै लिखि दे श्री गोपाल॥ तब सनां मुरकां कह्यौ जाइ, प्रहिलाद ब्ंधाशै बेगि आइ॥ तू राम कहन की छाडि बांनि बेगि छुडाऊ मेरौ कह्यौ मांनि॥ मोहि कहा डरावै बार बार, जिनि जल थल गिर कौ कियौ प्रहार॥ बांधि मारि भावै देह जारि, जे हू राम छाडौ तौ मेरे गुरहि गारि॥ तब काढि खडग कोप्यो रिसाइ, तोहि राखनहारौ मोहि बताइ॥ खभा मै प्रगटचौ गिलारि, हरनाकस मारचौ नख बिदारि॥ महापुरुष देवाधिदेव, नरस्य्ंध प्रकट कियौ भगति भेव। कहै कबीर कोई लहै न पार, प्रहिलाद ऊबारचौ अनेक बार॥ शब्दार्थ - साल = चटसाल, पाठशाला। आल-वाल = इधर उधर की बाते।
पाटी = पट्टी। सडा मुरका = सब लडको। गिलारि - मुरारि।
सन्दर्भ - कवीर भगवान की भक्त - वत्सलता का वर्णन करते हैॱ। भावार्थ - मैॱ राम छोडॅू गा। मुक्भ को राम-नाम के अतिरिक्त और और कुछ पढने से क्या काम है? प्रहलाद अनेक बाल-सखाओ के साथ पाठशाला मे पढने के लिए गये। उन्होने अपने अध्यापक से कहा कि मुझ इधर-उधर की व्यर्थ की बातें क्यो पढते हो? मेरी तख्ती पर तो आप केवल 'श्रीगोपाल' लिख दें। इसके बाद सब लडको ने जाकर प्रहलाद के पिता से शिकायत की। वह तुरन्त ही आकर प्रह्लाद को बाँधकर ले गये। उन्होने प्रह्लाद से कहा कि तू राम-नाम कहने की आदत छोड दे। तू मेरा कहना मान जा। मैं तुक्भ को अभी हाल वन्धन मुक्त कर दूँगा। प्रहलाद ने उत्तर दिया, "आप मुक्भे बारबार क्या दरा रहे हैं? आप चाहे तो मेरे ऊपर जल थल पव्ंत कही भी ले जाकर प्रहार करें। मुक्भे वाँध कर मार दें, अथवा मेरी देह को जला दें। अगर मैं राम-नाम को छोड दूँगा तो मेरे गुरूदेव (अन्त करण की शुद्ध-चैतन्य वृक्ति) का अपमान होगा। तब पिता ने क्रोध पूर्वक तलवार निकाल कर कहा, "अब मुक्भे बता, तेरा रक्षक कहाँ है।" उसी समय खम्भे मे भगवान मुरारि प्रकट हुए और उन्होने हरिण्यकशिपु को नाखूनो से फाड कर मार डाला। भक्ति भाव ने महापुरूष एव सम्पुर्ण देवताओ के स्वमी नृसिंह भगवान को प्रकट किय था। कबीर कह्ते हैं कि उनकी शक्ति का पार कोइ नही पा सकता हैं। उन्होने अनेक बार प्रह्लाद सहश भ्क्क्तो का उद्धार किया है। अल्ंकार - (I) वऋोक्ति- मोहि - काम (II) हष्टान्त - प्रह्लाद - वाल (III) पदमैत्री - आल जाल। कानि, मानि। जल यल। (IV) पुररूक्ति प्रकाश - वार-वार (V) सम्बन्धतिशयोक्ति - कोई लहै न पार।