पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(॥) जीवन के प्रति वैराग्य, भगवान के सर्वव्यापकत्व एव भगवन्नाम-स्मरण का प्रतिपादन है। (॥।)फुलनि मे निवास।--समभाव देखिए

   ज्यों तिल माही तेल है, ज्यो चकमक में आग । 
   तेरा साई' तुज्झ में जाग सर्क तो जाग । 
   तेरा साईं तुज्झ में, ज्यू, पुहुपन में वास ।
   कस्तूरी के मिरग ज्यू, फिरि-फिरि सूघे घास ।
                  (३८३) 
  मेरे जैसे बनिज सौं कवन काज,
         मुल घटै सिरि बधै ब्याज ॥ टेक ॥
  नाइक एक बनिजारे पांच, बैल पचीस कौ संग साथ॥
  नव बहियां दस गॉनि आहि, कसनि बहतरि लागे ताहि ॥
  सात सूत मिलि बनिज कीन्ह, कर्म पयादौ सग लीन्ह ॥
  तीन जगाती करत रारि चल्यौ है बनिज वा बनज झारि ॥
  बनिज खुटानों पूजि दूटि, षाडू दह दिसि गयौ फूटि ॥
  कहै कबीर यहु जन्म बाद, सहजि समांनू रही लादि ॥
  शादार्थ-: बनिज=व्यापार अथवा व्यापारी । वनजारे=टाँडा लादकर चलने वाले व्यापारी । कसनि=कसनियाँ । गवनि=गूनें, बोरियाँ । सात सूत= सात धातु । जगाती=कर लेने वाले । खटानौं=समाप्त हो गई । टाडो=सामान । 
  संदर्भ-कबीरदास वासनामय जीवन की निरर्थकता का वर्णन करते हैं । 
  भावार्थ्-मेरे द्वारा किए जाने वाले व्यापार से मया लाभ हो सकता है, जिसमे मूल धन (आत्म तत्त्व) घटता जाता है और वथ्न के हेतु कर्म-रुपी व्याज की वृद्धि होती जाती है। नायक एक है और पाँच वनजारे (पाँच ज्ञानेन्द्रिय) हैं। (जो विषय भोगो को खरीदते हैं।) शरीर के २५ प्रकृति रूपी पच्चीस वैल विपयो का धोभा ढोते हैं। इन बैलो पर नापने के नौ हाथ (चार अन्त करण एव पच प्राण) तथा दस इन्द्रियो (उनके विषय) रूपी दस वोरियाँ लदी हुई हैं। इनको शरीर की बहतर नाहियो रूपी रस्सियो से बाँधा गया है। सात भातुओ ने मिलकर शरीर के इस व्यापार को मालूम किया था और भाग्य रूपी प्यादे (पैदल चलने वाला सैनिक) को अपने साथ ले लिया था (वही मार्गदर्शक एव रक्षक है। ) सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण रूपी ये तीन कर (टैक्स) उगाहने वाले भगडा कर रहे हैं। इन्होने कर के लिए इतना भगडा किया अथवा भगडा करके इन्होने इतना कर वसूल कर लिया कि इस जीवन रूपी व्यापारी को सम्पूर्ण जीवन रूपी वाणिज्य की सामग्री इन तीनो गुणो को समर्पित कर देनी पडी और जीव रुपी व्यापारी यहाँ से हाथ भाटकर चल दिया । अब तो व्यापार समाप्त हो गया (उसमे टोटा अा गया है), पूंजी कम पड़ गई है और यह चैतन्य रुपी टाँडा दस इन्द्रियो रूपी दसो