पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५२८

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कबीर के ऐसे कथनों को अर्थवादी ही मनाना चाहिए| इस पद मे

       वर्णित् घटनाओ को कबीर ने सत्य माना है- यह आवश्यक नही है| भगवान की
        शकति करुन आदि गु  की व्यजना ही ही उन्हें अभिप्रेत है| कबिर की भगवान की
       दयालुता, भक्त वत्सलता आदि मै आस्था थी मै संदेह नही है| उन्हें हम
      सुगुणापसक मान सकते है, परनतु तुलसी सूर प्रभृति भक्त कवियों की भाति साकारो- 
      पासक नही मान सकते है और फिर बात वही है|भारतीय मन-मानस को
      प्रभावित करनै कै लिए पौराणिक आख्यानोँ की चर्चा के बिना काम नही चल
      सकता है|
         
        विष्णु धयांन सनान करि रे, बाहरि अंग  न धोइ रे|
        साच बिन सीझसि नहीं, कोइ गयान दृष्टि जोई रे॥ टेक || 
       जंजाल मांहैँ जीव राक , सुधि नही सरीर रे||
      अभिअतरि भेदै नही कोई बाहरि न्हवे नीर रे|
      निह्कर्म नदी ग्यान जल, सुनि मडल मांहि रे||
     आधूत जोगी जोगी आतमा कांई पेरगं सजमि न्हाहि रे|
     इला प्यगुला सुषमनां पछिम् गगा बालि रे||
     कहै कबीर कुसमल झडै कांई मांहि लौ आग पषालि रे |
    शब्द्थ-अभिअन्तरि=आम्यन्तर, हुदय, मन   सीभसि=सिद्धि है|
    जोई=दिखाई देता है |ओधूत=अवधूत  साधक हठयओगी साघाक साधक् , सजाम=सयम कुसमल=पाप|भूड= धुल जाएँगे। पषालि धोले| बालि=सुषुम्ना । पछिम  सुषुम्ना |गागा=इदा|

शन्धर्ब-कुछ साधक बहा साघनों एयो साधनाओं में व्य्रर्थ् शक्थि खाते रहतै है और अंतरआत्मा को निर्मल न्हीं बनाते है|कबीरदास इन्हीं को सावधान करते है|

भावाथ-कबीरदासजी शरीर को मल-मल कर स्नान करैने वाले साघकों को संबोधित करते हुए कहैते है कि विष्णु ज्ञान का स्नान करो बाहर से धनआगि को मत घोते रहो|भाव यह है कि पानी से शरीर को घोनो सै कोई लाभ नही होगा भगवान का घ्यान करके अपने मन को निर्मल बनाना ही मनुष्य् का कर्म है|सत्य कै बिना सिद्धि की प्राप्ति नही होती है अत ज्ञान दृष्टि से दखने का प्रयत्न क्यो नहीं करते हो? तूने अपनै जी को जगत् के जजाल मे डाल रखा है और तुम्हें अपने शरीर का भी होश नही है| भाव यह है कि तू विष्य के मोहवश अपने शरीर के स्वास्थ्य के प्रति भी असावधान हो गया है| अपने अंदर प्रवेश नहीं करते हो अर्थात आत्म-चिन्तन से विमुख हो- एसी में वोहर जल से क्या स्नान करते हो - बाह्र्री टीमटाम से कोई लाभ नही है|शून्य मंडल मे निष्काम कर्म की नदी बहती है उस मै ज्ञान का जल है| जो योगी सषम के द्वारा उस नदी में स्नान करता