पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जन्म व्य्थ ही व्ञ्तीत हुआ जा रहा है!तू राम का भजन कर (जिससे तेरा क्ल्याण हो !)

अलकार--(i)-गूढोकित--कहा** वात!
             (ii)-वक्रोकित् --कहा लै आयो * अत!
             (iii)-उपमा--ज्यू बनि हरियल पात !
             (iv)-ह्ष्टान्त--रावण विहात
विशेष--(i)ससार और उसके सम्ब्न्धो की असारता का प्रतिपाद्न है!
  (ii) जिवन की क्षण भगुरता की व्यजना है!
  (iii)'निवेद' एव वैराग्य की अभिव्यकित है!
                      ( ४०१)
     नर पछिताहुगे अधा !
     चेति देखि नर जमपुरी जैहै,वयु बिसरौ गोध्यदां!!टेक!!
     गरम कुंङिनल जब तू बसता ,उरध ध्यान ल्या !
     उरध ध्यान्ं मृत मंडलि आया ,नरहरि नाचं भुलाया!!
     बाल विनोद छ्हूं रस भीनां ,छिन छिन मोह बियापं!
     बिष अमृंत पहिचांनन लागौ पाच्ं भांति रस चाखै !!
     तरन तेज पर त्रिय मुख जोठै,सर अपसर नही जांन!
     अति उदग्रादि महामद मातौ ,पाप   पु नि न पिछांनै!!
     प्यंङर केस कुसुम भये धौला,सेत पलटि गई वांनी!
     गया क्रोध मन भया जु पावस ,कामं दियास मदांनी!!
     तुटी गांठि दया घरमम उपज्या,काया कवल कुमिलांना!
     मरती बेर बिसूरन लागौ ,फिरि पीछं पछितांनां!!
     कहैै कवोर सुनहुँ रेे संतौ,धन माया कछू संगि न गया!
     आई तलब गोपाल राइ की,धरती संन भया!!
शब्दाथ--उरध ध्यान,भगवान मे ध्यान ! मृतमडलि=
  मृत्यु-लोक!तरण == तारुण्य,जवानी!सर अदार ==अवसर कुअस्वर !प्यडर=
  भूरा! पावस॔==आदि,दया धमं की बात करने लगा!गाॅठ==अहकार की
  गाठ!बिसूरन==मद पड गई!
 सन्दभ्ं--पूव पद के समान !
 भावाथ-अरे अधे मनुष्य,अपने इन क्मो के फल स्थरुप तुभको अन्त मे
पछ्ताना पडेगा। तू सचेत होकर देख । तुझको यमपुरी जाना है। तुम गोविन्द को क्यो भूल गये हो? जब तुम गम कुण्ड मे ये तव तुमने (उसका कष्टो से त्राण पाने के लिए)भगवान मे ध्यान लगाया!फल स्वस्प तुम उस्से निकलाकर इस मृत्यु लोक मे आ गए!यहा आकर् तुमने हे  मानय फिर हरि का नाग (अथवा नृृृमिह  भगवान को)भुला दिया है !वाल्याव्स्था मे त्रीडाए करते हुए तुमने छओ रसो के