पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५४७

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मै वेचारा तो किनमे हूँ। मै तो इन्ही आँखो से इस जगत को देखता हुँ। शिव, ब्रह्मा तथा नारद सरीखे ज्ञान-हषिट वाले भी इसको नही जान पाए हैँ। वे तो संपूर्ण भूतो के आदी एव अत रुप भगवान मे लीन रहते है तथा भगवान के सहज रुप का ज्ञान करके उसमे सतोष का अनुभव करते है। वे सहज ही राम नाम मे अपना घ्यान लगा लेते है और निरन्तर राम-नाम मे तन्मय हो जाता है,उन्हे आत्म स्वरूप का साक्छात्कार हो जाता हैा