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कबीर]
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के साथ परमेश्वर से जाकर मिल गई। सारी ज्ञानेनिद्र्यॉ आन्ंदमय हो गई तथा अत्यधिक प्रेम के साथ भगवान के प्रेम मे मग्न हो गई। सखियाँ वहॉ चली जहाँ उनके परमानन्द राम थे अर्थात् समस्त वृत्तियॉ रामोत्मुख हो गई। उनके मन मे अत्यन्त उल्लास था और उन्होने समस्त विपयासत्त्कि को त्याग कर दिया। आनन्द मे उल्लसित जीवात्मा कहती है कि मुभ्के ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरे ह्रदय मे वसत का विकास हो गया है। हे भगवान, मै आपकी बलिहारी जाती हूं। मेरा ह्रदय भक्ति रूपी वसत मे लवलीन होकर उसी प्रकार गा रहा है जैसे वन मे कोकिला गू ज रही हो। ह्रदय मे शखो का शब्द होता है और वीणा की ध्वनि हो रही है। जीव का तन मन चित भगवान मे तन्मय हो गया है। अब तक जो भगवान अचल (कठोर एव निर्जीव) प्रतीत होते थे,अब भक्ति के प्रभाव से द्रवित (सजीव एव करुणाद्रं) हो गये हैं और जो पगु थे,उन्हे पैर मिल गये है अर्थात् जो भगवान के प्रति उन्मुख होने मे असमर्थ थे, वह अब भक्ति-पथ पार अग्रसर हो गये हैं। भक्त लोग भ्रमर की भांति भगवान के अधर रम का पान कर रहे है। शिकार योग्य पशु और शिकारी सिह वैर-भाव भूल कर भक्ति मे तन्मय हो गये हैं। सूर्य और चन्द्रमा भी अपने अपने रथो को खीचकर खडे हो गये हैं । देवगण, गन्धर्व, मुनि तथा जितने भी देवता हैं, वे सब भगवान की छवि का दर्शन-लाभ करने हैं तथा उनकी आरती करते हैं, प्रार्थना करते हैं तथा सेवा करते हैं। वासुकी, इन्द्र, ब्रहमा आदि सव भक्ति (ज्ञानोदय) की इस देशा को प्राप्त करने की इच्छा करते हैं और यह मनोरथ करते हैं कि हमारे चित मे राम के प्रति दुर्लभ दास्य भक्ति क निवास हो।


अल्ंकार - (१) मानवीकरण - पवन सम्त्रन्वी उक्तियॉ। चद अरु सुर्च खाची पवन को यदि मन का प्रतीक माना जाए, तो यहाँ अप्रस्तुत विधान का अश मानने से 'उपमा' अलकार भी हो सकत है।

(२) यमक--सनमुखि।

(३)पुनरुक्ति प्रकाश-गछत गछन, जरत-जरत, करि-करि।


(४)गूडोक्ति-तहौ छाडि"""जाई।


(५)रुपक-मन वारुनि।


(६)दिरोधाभाम-अछै"""पूरी।


(७)वत्र्कोति-बिन"""पुरी।

(८)उपमा-ज्यु"""किन्हा, मधुकर""""अधरनी।

(९)मभग पद यमक-चल अचल।

विशेष-(१) गानोदय, अचवा भक्ति के उदय दशा का सजीय वर्णन है।

(२)निनगं के ग्द्द्स्यवाद की सुन्दर व्यजना है।

(३)मावज"""माची-नमभाय देसे-

कह्जागे एकत बमत अहि मधून मृग वाध।

जगत तपोवन मो फियो, दीरघ दाघ निदाध।

(बिहरि)