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[ कबीर
 

नाम पर जीव-हत्या करते रहते हैं । इस प्रकार वह प्रकारान्तर मे जैनियो के बाह्मचारो, उनके मठाधीशो आदि के प्रति अपना विरोध प्रकट करते है।

(३१)

आपन करता भये कुलाला, बहु बिधि सिष्टि रची दर हाला ॥

विघनां कुभ किये द्वै थांना, प्रतिबिंबता मांहि समांनां ॥

बहुत जतन करि बानक बांनां, सौज मिलाय जीव तहां ठांना ॥

जठर अगनि दी की परजाली, ता मैं आप करै प्रतिपाली ॥

भींतर थे जब बाहिर पावा, सिब सकती द्वै नांव घराबा ॥

भूलै भरमि पर जिनि कोई, हिंदू तुरक झूठ कुल दोई ॥

घर का सुत जे होइ अयांनां, ताके संगि कयूं जाइ सयांनां ॥

साची बात कहै जे वासूँ, सो फिरि कहै दिबांनां तासूँ ॥

गोप भिन है एकै दूधा, कासूं कहिए बाम्हन सूधा ॥

जिनि यहु चित्र बनाइया, सो साचा सुतधार ।

कहै कबीर ते जन भले, जे चित्रवत लेहि विचार ।।५।।

शब्दार्थ - कुलाला = कुम्हार,सृष्टिकर्त्ता । दग्हाला = आजकल, अर्थात् शीघ्र ही । विघना =सृष्टिकर्त्ता, भगवान । सींज = साधना ।

सन्दर्भ - कबीर कहते है कि यह सृष्टि माया स्वरूप है । मनुष्य को किसी प्रकार भी कर्त्ता अभिमान नही करना चाहिए ।

भावार्थ- भगवान स्वय कुम्हार वन गये और उन्होंने विविध नाम रूपात्मक इस सृष्टि की रचना तत्काल कर डाली । इस कर्त्ता ने दो स्थानों पर घडे (प्राणी) तैयार किये अर्थात द्वैत से सृष्टि की और उन अन्त करण रूपी घडो मे स्वय प्रति- विम्ब बन कर समा गये । बहुत यत्न करके अनेक साधनो को जुटाकर नया पच तत्वो आदि को मिलाकर उसने जीव बनाया । मातृ-उदर मे गर्भस्थ शिशु को जठ राग्नि जलाये डालती थी किन्तु वहाँ भी वह दयालु जीव की रक्षा करता था । यही गर्भ नव उदर ने बाहर आया, तव उसने अपने दो नाम शिव (पुरुष) और शक्ति (नारी) रख लिये- अर्थात इस विविध रूपात्मक जगत का मूल स्त्रोत वह एक (ब्रह्म) ही है । अब कोई इस भ्रम न न रहे कि हिन्दू और मुसलमान उत्पत्ति की दृष्टी से दो भिन्न कुल के हैं। अगर घर लडका मुर्ख होता है, तो घर के समझ-दार लोग इनको अपने साथ नहीं लगाते हैं । परन्तु अगर में सच्ची बात कहता हूँ अगर मैं जौय को माया द्वारा आवृत्त होने की बात कहता हूँ, तो,लोग मुझे पागल कहते है । सब एक ही परम तत्व रूप दूध से उत्पन्न हुए हैं, केवल ग्वाले (पिता) के ही भेद है । ऐसी स्थिति मे ब्राह्मण और शूद्र किससे कहे? जिसने सृष्टि का यह नियम बानाया है वह सच्चा सूत्राधार है। ये व्यक्ति ही वासत्व में ज्ञानी हैं, जो इस मग्गर को विग्वा (मिया) समझते हैं।

अलंकार-(1)- निदर्शना - नृलै - नयानां ।