पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५९२

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९०७ ] [ कबीर

विधाता ने इस वेडे (पर-सागर से पार जाने के सावन) को बनाया है और उसका नाम "राम-नाम" रख दिया है । अलंकार- (1) रूपक--भौसानंब्बशु भाव भेरा है (11) रूपकातिशयोक्ति---भेरा साजि । ता) उल्लेख-दु ख ' " विश्राम । अवशेष--") राम-नम की महिमा अपार है । कबीर का तात्पर्य वाशरधि राम से नहीं है, वडिक उनका तात्पर्य परम ब्रहा के गुणों से है । (गा यह नाम-माहात्म्य-वर्णन सगुण मनरो जैसा है । यया ८ विश्वास एक राम-नाम को । मानस नहि परितीसिं अनत ऐसौई सुभाव मन जाम को है पदिवो पन्दूयो न छठी, छ मत रिगु जजुर अयर्वन साम को 1 गै" र्व- फै सव दिन सव लायक भ प्र गायक रघुनायक गुन-गृरम को । बैठे नाम काम-तरु-तर-डर कौन छोर धन घाम को । को जानै को जैहै जमपुर, को सुरपुर परधधि को । तुलसिंहि बहुत भलो लागत जग जीवन राम गुलाम को । (गोस्वामी तुलसीदास) ३६ ) जिनि यह भेरा दिढ़ करि गहिया, गये पार तिरुहों सुख लहिया 1। दुमनां हं जिनि चित बुलावा, करि छिटके थे थाह न पावा 1। इक दूबे अरु रहे उरवारा, ते जनि जरे न राखपाहारा 1। राखन की कछु जुगति न कीन्हों, राखणहार न पाया चौन्हीं 1। जिनि चिन्हों ते निरमल अगा, जे अचीन्ह ते भये पतंगा 1। रांम नांम क्यों लाइ करि, चित चेतन हूँ जागि 1 कहै कबीर ते य, जे रहे रांम रुयौ लागि 11 शब्दार्थ-भेरा-च-य, राम-नाम का बेडा । दिढ करि=--दृढ़वापूर्वक । महिया---, पकड रखा है 1 दुमना इं==दुविधा गे पड कर । करि जिटकै८-८हाथ छूट गया 1 उरवारा==इसी पार । राखनवा-रक्षता । सन्दर्भ-पूर्व पद के समान राम-नाम की महिमा का प्रतिपादन है । भावार्थ--- जिन लोगों ने राम-नाम रूपी नाव को कसकर (दृढनिश्चय पूर्वक) पकड रखा है (विस्वास पूर्वक अवलम्बन ग्रहण कर लिया है ) वे भव-सागर के पार हो गये और उन्हें सुख की प्राप्ति हुई । द्विविधा में पड कर जिन्होने अपना चित्त डरेंवाडोल कर दिया, उनका हाथ छूट जाता है (वे बीच में गिर पडते हैं) और उनको इस भवसागर की थाह नहीं मिलती है अर्थात् वे इसमे डूब जाते हैं । ऐसे व्यक्ति एक तो भवसागर में डूब जाते है और यहीं रह जाते है तथा सत्सारिक