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[कबीर
 

के अनुसार अन्य शरीर मे प्रवेश कर सकता है । उस माधक को स्वर्ण-निर्माण, की सामर्थ्य और गुप्तघन की दृष्टि भी प्राप्त होजाती है ।

सन्दर्भ-इस पद मे हठयोग के साधक अवधूत का कथन है । कुण्डलिनी से व्रह्य रन्घ्र् तक पहुँचने की प्रक्रिया का वर्णन है ।

भावार्थ-ऊपर सहकार का कूप है और नीचे रहने वाली कुण्डलिनी इसका पानी भरती है । जव तक नहम्रार रूपी गगन से शुद्धात्मा कि ज्योति प्रति- फलित होकर साधक को दिखाई नहीं देती तव तक अविनाशी ब्रह के प्रति उसका मन अनुरक्त नहीं होता है ।

कबीरदास अपने आपको माघक मान कर कहते है कि जव तक मुझे ब्रहारन्घ्र् का ज्ञान प्राप्त न हो, तब तक भला मुझे (अथवा किसी साधक को) किस प्रकार संतोष प्राप्त हो सकता है ? जब तक साधक त्रिफुटी की सघि से परिचित होकर सहम्रार स्थित चन्द्र और मूलाधार स्थित सूर्य को पास-पास नहीं लाता है-पिंगला और इडा नाडियो के मध्य समन्वय स्थापित नहीं करता है, जब तक वह नाभि- स्थित मणिपूरक चक्र का चिंतन नहीं करता है, तव तक वह शुध्द चित रूपी हीरे द्वारा शुद्धात्मा रूपी हीरे को कैसे वेव सकता है ? अभिप्रेत भाव यह है कि आज्ञा चक्र मे स्थित त्रिकूटी का ज्ञान प्राप्त होजाने पर इडा और पिंगला का अन्तर समाप्त हो जाता है तथा मर्णिपूरक चक्र पर चिन्तन करने पर ही ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव होती है । सोलह कला से युक्त चन्द्र जहाँ सहकार पर सुशोभित रहता है, वही अनाहत का वाद्य भी बजता है । भाव यह है कि व्रह्यररुघ्र वाले सहस्रद्ल कमल् मे ब्रहा का निवास है |सिन्द्धि प्राप्त कर लेने पर योगी को वहीं पर अनाहदनार्द सुनाई पडता है । सिद्धि मिलने पर ही सुधुम्ना मैं आनन्द उत्पन्न होता है तथा महत्रार के उलटे कमल में गोविन्द को प्राप्त करता है । साघन्न् द्वारा जव मन और प्राण वायु मिल जाते हैं, तव मन और परमात्मा मिलकर इस प्रकार एक होजाते हैं जिस प्रकार नाले-नालियों का जल गंगा के वहते हुए जल में मिलकर एक मेल होजाता है । कबीरदास कहते हैं की इस प्रकार अपने शरीर के भीतर ही सब कुछ समभलो तथा सहत्रार् के घाट-रहित स्थान में मोक्ष की क्यारी को आनंदामृत से सीच लो ।

अलंकार (i)- असंगति-ऐसी वाणी ।

(ii) रूपक - भवर गुफा, नाभि कमल, हीरै मन, हीरै पवन, औघट घाट क्यारी ।

(iii) विरोधाभास की व्यजना - औघट घाट ।

(iv) यमक-हीरै हीरा।

(v) उदाहरण -ज्यु भइया ।

विशेष----(i) कबीरदास ने हठयोगा की प्रक्रिया को वड़े ही कवित्वपूर्ण ढ्ग पर रोचक शैली में समझाया है ! उन्होंने बताया है कि किस प्रकार इसी शरीर मे