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२७६) [ कबीर की साखी

स्न्दर्भ - इस संसार् मे लोग सन्सारिक वस्तुओ से प्रेम करते है । ईश्वर प्राप्ति के साध्नन नही अपनाते है।

भवार्थ - इस संसार् मे "तीन वस्तुओ के तो त्प्रेमी बहुत मिल जाते है परन्तु 'चॉतीथी' से प्रेम करने वाले कोई भी नही मिलते है , यग्यपि उस ईश्वर के सम्पूण मनुश्य प्रेमी है किन्तु सन्सार के माय- मोह मे लिप्त होकर पराधीन हो किकत्व्य चिमूढ् हो जाते ट्ह और ईश्व्र को विस्म्र्त् कर देते है ।

विशेप- तीन सनेही बहु मिलै न कोई के विभिन्न अर्थ् है ।

१) क) सम्पति ख) स्त्री ग) मित्र तथा सम्बनधी घ )ईश्व्र्र्

२) क) जाग्रत ख)स्वप्नन् ग)सुशुप्ति घ)तुरीय ।

३) क) धम ख) अन्थ ग) काम घ) मो ।

४) क) लोकप्रीय ख) वितैपाएग ग) पुत्र घ) प्रभु प्रप्ति ॥

शब्दार्थ - परबसि = परबग्य , माया ग्रस्त ।

माया मिलै महोबती , कूडै श्राखै बैन ।
'कोई घायल वेध्या ना मिलै , साई हदा सैए ॥१० ॥

सन्दर्भ - माया के वशीभूत तो बहुत से व्यक्ति मिल जाते है किन्तु ईश्वर प्रेमी कम मिलते है ।

भावार्थ - इस सन्सार मे मोहवती माया के वशीभूत तो बहुत से व्यक्ति मिल जाते है जो व्यर्थ की बातो कहकर अपना समय बिगाडते रहते है । किन्तु ऐसा कोई व्यक्ति नही मिलता जिसका ह्रदय ईशवर की क्रिपाकटा से घायल हो गया है ।

शब्दार्थ - महोवती = मोह युक्त । कूडे = बुरे । आखै = कहती है । बेध्या = विन्ध्या हुआ । साई = प्रभु । सैएग = कटाक्श ।

सारा सूरा बहु मिलै , घायल मिलै न कोई ।
'घायल ही घायल मिलै , तब राम भगति दिढ होइ॥ ११ ॥

सन्द्भ_इश्वर प्रेम की चोट खाए हुए व्यक्तियो का इस सन्सार मे अभाव है। समान गुण वाला व्यक्ति एक दुसरे से मित्र्ता जोड्ता है।

भावार्थ-- इस स्ंसार मे ऐसे शुरवीर तो बहुत मिल्ते है जिन्होने कभी भी युद मे चोट न खाई हो। लेकीन ईश्व्र्र प्रेम की चोट खाकर घाय्ल हुआ शुरवीर कोइ न्ही मिल्ता।ईश्व्र्र को भक्ती से दूद्ता तभ्हि आ सक्ती है जब्की प्रेम से आह्त हुए भक्त को अप्नने ही जैसा प्रेम का घाय्ल व्यक्ति मिल जाय और उन दोनो से मेत्री स्ंब्ंध स्थापित हो जाय।