पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८०]
[ कबीर की साखी
 

कबीर स्रोई सूखा , मन सू माङै भ्कूभ्क ।
पंच पयादा पाड़ि ले, दूरि करे सब दूज ॥३॥

सन्दर्भ - काम, क्रोध , मद, लोभ , मोह को नष्ट करके ब्रह्म और जीव के भेद को मिटा देना चाहिए ।

भावार्थ - कबीरदास जी कहते है कि शूरवीर वही है जो अपने मन् से युद्ध करने मे प्रव्रित हो जाय और काम , क्रोद्ध , मद , लोभ , मोह रूपो पांचो प्रकार कि सौनिको को घायन्न करके आत्मा और परमात्मा के बीच् भावना का अन्त कर दे ।

शब्दार्थ-- पच पयादा = पच पदाति ,पाँच प्रकार की सैना अर्थात काम, क्रोध , मद , लोभ , मोह ।

सूरा भ्कूभ्के गिरंद सूँ, इक दिस सूर न होइ ।
कबीर यौं बिन सूरिवाँ, भला न कहिसी कोइ ॥४॥

सन्दर्भ - जो व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियो को वश मे कर पाने वाला नही |

भावार्थ- कबीरदास जी कहते है कि शूरवीर तो वही है जो चतुर्दिक युद्क रता रहे । केवल एक दिशा मे युद्ध करने वाला शूरवीर नही कहा जा सकता । जब तक युद्ध करने वाला चारो ओर युद्ध करने मे प्रव्रित नही होगा तब तक उसे श्रोद्धा योद्धा कोई नही कहेगा ।

विशेष -(२)इसका अर्थ साधना के क्षेत्र मे भी लिया जा सकता है । सच्सा धक को चारो ओर के माया जनित असत त्तव से युद्ध करना चाहिये । एकाध असत त्तव से युद्ध करने वाला सच्चा साधक नही कहा जा सकता है ।

(२)स्लेश अलंकार का प्रयोग है ।

शब्दार्थ- गिरद = चतुर्दिक,चारो ओर ।

कबीर श्रारणि पैसि करि , पीछै रहै सु सुरि ।
 साँई सू साचा भया, रहसी सदा हजूर ॥ २ ॥

सन्दर्भ-- सच्चा शूरवीर संसार क॓ माया जनित आकर्णषो मे नही फसता है । वह और लोगो की तुलना मे पीछे रह जाता है ।

भावार्थ - कबीर दास जी कहते है कि सच्चा शूरवीर वही है जो संसार रुपी जंगल प्रवेश करके भी अन्य साथियो से पीछे रहे अर्थात , माया जनित आकर्षणो