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६४४] [ कबीर

चतुर हैं--इससे प्र्त्येक-कर्म का पूरा हिसाब देना पडता है यानी यहाँ कारण-कार्य का नियम ऐसे निर्वाध रूप में कार्य करता है कि प्रत्येक कर्म का उपयुक्त फल मिलता है । यह एक ऐसा नगर है जहाँ रहने वाले प्रत्येक जीवात्मा का धर्म भ्रष्ट होगया है और यहाँ पाँच किसान (नेत्र, कान, नाक, मुँह तथा त्वचा) रहते हैं, जो जीव रूपी स्वामी का कहना नहीं मानते हैं । इस गाँव का ठाकुर काल समय-समय पर इस शरीर रूपी खेत को नापता रहता है और मन रूपी पटवारी अपना हिस्सा नही छोडना हैं । भाव यह है कि काल तो प्रत्येक क्षण सिर पर सवार रह कर यह देखता है की शरीर कही खराब तो नहीं हो गया है और मन रूपी पटवारी मुझसे शरीर का व्योरा माँगता रहता है | वस्तुस्थिति यह है कि यह शरीर प्रत्येक क्षण क्षीण होता रहता है और इस कारण काल ठाकुर का भय मुझे हर घडी सताता रहता है । साथ ही पटवारी के डर के कारण मैं मनचाहे ढग पर शरीर का उपभोग भी नहीं कर सकता हूँ । मेरे मन ने मेरे इस शरीर को विषय-वासनाओं के जर्जर वघनो से बुरी तरह जकड दिया है जिसके कारण मेरे शरीर को अत्यधिक कष्ट होता रहता है । इस गाँव का उधार देने वाल मेहता अर्थात् प्रारब्ध कर्म अत्यन्त दुष्ट्र है और क्रियमाण कर्मरूपी बलाही (कर्मचारी) भी बडा दुष्ट है | वह मुझे विषय भागों में उलझाता रहता है । वह तो अच्छे-अच्छे जमींदारी के सिर के वाल भी नोच लेता है-उनसे प्रेम एव सदूवृत्तियौ की निधि छीन कर उन्हें दरिद्र कर देता है । इस नगर का बुधि-रूप दीवान भी व्यथाओ के प्रति सहानुभूति रखता हुआ न्याय नही कर पाता है । पिछले जन्मो का अनुभव यह हैं कि शरीरात होने के अवसर पर धर्मराज ने जव मुझसे इस शरीर का पूरा हिसाब-किताब मागा तो मेरी ओर बहुत बकाया निकलता था । उस समय मेरे शरीर रूपी खेत को नष्ट करने वाले इन्दिय रूपी पाँचो किसान मुझे छोड कर भाग गए और हे राम ! बेचारा जीवात्मा ही सब प्रकार के बन्धनों से बाँध दिया गया । इसीलिए कबीरदास कहते हैं कि हे साधुओं । मेरा कहना गाँठ बाँधलो और भगवान (हरि) का भजन करके इस भवसागर से पार उतरने के लिए वेडा बाँधो । इसके पश्चात् वह भगवान से प्रार्थना करते हुए कहते है कि हे राम । इस बार तो इस जीव (मुझको) क्षमा कर दीजिए । अगले जन्म मे मैं आपका पूरा हिसाब चुकता कर दूँगा--अपने शरीर को विषय-भोगो से बचाकर अधिक अच्छा करके रहूँगा ।

     अलकार- (1) सागरूपक-- पूरा पद ।
           (11) रूपकातिशयोक्ति---गाइ ।
     विशेष--- (1) सन्त सम्प्रदाय के अनेक प्रतीकों का प्रयोग है ।
            (11) कबीरदास ने ज्ञानेन्दियो के नाम इस प्रकार लिए हैं मानों उनके प्रति

आक्रोश व्यक्त कर रहे हो ।

           (111) पापकर्म करने से शरीर क्षीण हो जाता हैं । इसी को काल द्वारा खेत

का नापना कहा गया है । गर्दन नापने की भाँति शरीर नापना एक नया मुहावरा