पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६४९

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चोखो वनज व्योपार करीजै,

     आइनै दिसावरि रे राँम जपि लाही लीजै॥ टेक॥

जव लग देखौ हाट पसारा,

     उठि मन बणीयों रे, करि ले वणज सवारा॥

वेगे हो तुम्हे लाद लदांनां,

     औघट घाटा रे चलना दुरी पयांनां।

खरा न खोटा नां परखानां,

     लोहे कारनि रे सब मुल हिरांनां॥

सकल दुनी मै लोभ बियारा,

     मुल ज राखै रे सोई वनिजारा॥

देस भला परिलोक विरांनां,

     जन दोइ चारि नरे पूछो साध सयांनां॥

सायर तीर न वार न पारा,

     कहि समझावै रे कबीर बणिजारा॥

शब्दार्थ-चोखौ=चोखा, लाभकारी। वनज-वणिज्य। दिसावरि=देसावर, विदेश। लोहा=लाभ। हाट=बजार। सवारा=सिदोपी, जल्दी हो। औघट=अवघट=अटपटा। पयाना=प्र्माण, चलना। वेगे=शीघ्र ही। लाहे=लाभ| मुल=मुलघन, गाठ की पूजी। हिराना=गवाँना, न्ष्ट हो गया। वनिजारा-वाणिज्य करने वाला। सयानां=चतुर। साय्रर=सागर। तीर=किनारा।

सन्दर्भ- कबीर कहते है कि इस संसार मे रह कर घमंपुर्ण आचरण ही हितकारी है।

भावार्थ- कबीर जीव को तुलना एक व्यपारी बणिक के साथ करते हुए कहते है कि हे जीव! तुम्को अच्छा-लाभकारी वाणिज्य व्यापार करना चाहिए। इस इहलोक रूपी विदेश मे आकर भगवान राम के नाम का स्मरण करते हुए लाभकारी व्यपार करना चाहिए। जब तक इस जगत और जीवन के वाजार का पसारा है, अथवा जब तक जीवन रूपी बाजार चल रहा है, उसी समय मै तु उठकर जल्दी मे अपना लाभ्रकारी व्यापार कर ले। तुम्को शीघ्र ही लदना-लट्टाना होगा अर्थात् तुम्को जल्दी ही अपना ठाट समेठ कर इस जीवन-रूपी बाजार से उठकर चल देना होगा और काफी दूर चल कर अटपटे घाट पर पहुँचना होगा। तुमने न खरा-खोटा देखा, न कुछ परखा। लाभ के लोभ मे तुमने अपनी गांठ की पूँजी (चेतना) भी गवा दी। भाव यह है कि तुमने इस जगत् मे खरे-खोटे की परख नहीं रखी और सांसारिक के लोभ मे तुमने अपने मूल चैतन्य-स्वरूप को भी भुला दिया। यह व्यापार मे गाठ की पूंजी गवाने के समान ही हुआ। सारी