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३२०] [ कबीर की साखी
भावार्थ-कबीरदास जी कहते हैं कि कठोर ह्रदय व्यक्ति के ऊपर शब्द रूपी बाण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शब्द रूपी बाण का प्रभाव तो ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों पर पड़ कर विवेक,और विचार की उत्पति करता है। शब्दार्थ-भिदे=भिदता है। सीतलता कै कारणौं, माग विलंबे आइ । रोम रोम विष भरि रहया,अमृत कहाँ समाई ॥५॥ संदर्भ-संसारी जीवो मे काम,क्रोध,मद,लोभादि भरे रहते हैं । भावार्थ-संसार रूपी मांग मे शीतलता प्राप्त करने के लिए ही ठहर कर घर गृहस्थी जुटाया था किन्तु इस विश्राम-स्थली मे विप ही भरा हुआ है-विषय वासना काम,क्रोध,लोभादि भरे हुए हैं-अब उसमे राम नाम रूपी अमृत कहा समा सकता है। शब्दार्थ-बिलबे=ठहरे हुए हैं। सरपहि दूध पिलाइये,दूधै विष धवै जाई । ऐसा कोई मां मिलै,स्यू सरपै विष खाइ ॥६॥ संदर्भ-अच्छे गुण का प्रभाव अच्छी वस्तु पर ही पडता है। बुरी वस्तु पर नही। भावार्थ-सर्प को दूध पिलाने पर विष बन जाता है। मुझे अभी तक इस प्रकार का मनुष्य नही मिला जो सर्प-माया के साथ-साथ विष-वासना को भी समाप्त कर दे। विशेष-तुलना कीजिए- "पयः पानं भुजगानां,केवल विष वर्धनम् । उपदेशो हि मूर्खाणां,प्रकोपाय न शान्तये॥" जालौं इहै बड़पणाँ,सरलै पेडि खजूरि। पंखी छांह न बीसवैं,फल लागै ते दूरि ॥१०॥ संदर्भ-उस वस्तु से कोई लाभ नही जिससे किसी का उपकार न हो सके। भावार्थ-खजूर के सीधे और ऊँचे पेड़ से क्या लाभ?न तो उससे पक्षियो को छाया ही प्राप्त होती है और न उसके फल ही आसानी से किसी को प्राप्त हो सक्ते हैं क्योकि फल बहुत ऊँचाई पर लगते हैं। शब्दार्थ-बडपणa=बडप्पन ।