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३२२] [कबीर की साखी

      विशेष-यथा बालक माता-पिता से मिलने पर अपने ह्र्दय की सब बाते
 कह डालता है,उसी प्रकार परमपिता से कबीर सब कुछ कह देना चाहते हैं।
           कबीर भूलि बिगाडियाँ,तू नाँ करि-मैला चित ।
           साहिब गरवा लोडिये,नफर बिगाडै नित ॥२॥
      सन्दर्भ-यदि भूल से स्थिति बिगड गई है तो मन मैला उदास करने से
 कोई लाभ नही है।अह का विसजंन कर देना चाहिए ।
      भावार्थ-कबीरदास कहते हैं कि यदि तूने ब्रह्म को भूल कर अपनी स्थिति
 बिगाड ली है,तो सोच या शोक करने की बात नहीं है। तू अहं का परित्याग कर
 दे। अहं या व्यक्ति नित्य ही हानि पहुँचाता है।
      शब्दार्थ-बिगाडिया=बिगाड लिया । चित=चित । नफर=व्यक्ति,
 अहं । गरवा-
          करता केरे बहुत गुण,औगुँण कोई नाँहि ।
         जो दिल खोजौ आपणी,तौ सब औगुण मुझ मांहि ॥३॥
      सन्दर्भ-ब्रह्म सदगुणो की खान है और अवगुणो का प्रतीक ।
      भावार्थ-ब्रह्म मे कोई अवगुण नही है। वह गुणो का ही पर्याय या समूह
 है।जब मैं अपने ह्रदय को देखता हूँ तो समस्त अवगुण अपने मे ही दिखाई देते हैं।
      शब्दार्थ-केरे=के । औगुण=अवगुण । आपणी=आपणां,अपना ।
          औसर बीता अलपतन, पीव रह्या परदेस ।
          कलंक उतारौ केसवा, भांनौ भरभ अंदेस ॥४॥
      संदर्भ-जीवन माया के आकर्षण मे बीत गया और मैं प्रिय को न 
 पहचान सका ।
      भावार्थ-माया और अज्ञान मे अवसर बीत गया अब जीवन का थोडा-सा
 भाग शेष रह गया है। और प्रिय(ब्रह्म)परदेश के ही है। उससे भेंट हो पाई।
 हे केशव!मेरे जीवन के अंतिम समय मे ही सही,पर मेरे कलंको से मुझे अवकाश
 दीजिए,और भ्रम जनित शकाओ से मुक्ति दीजिए।
      शब्दार्थ-औसर=सुअवसर । अलपतन=अल्पतन । रह्या=रहा,है ।
 भानौ-भरंम=भ्रम । अदेस=अंदेशा ।
           कबीर करत है वीनती,भौसागर कै तांईं ।
           बङे ऊपर जोर होत है,जभ कूँ बरजि गुसाईं ॥५॥
      सन्दर्भ-प्रस्तुत साखी मे यम के अत्याचार के विरुध्द कबीर ब्रह्म से
 निवेदन करते हैं ।