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६७२ ] [ कबीर

         जागि जागि नर काहे सोचै, रोइ सोइ कब जागैगा ।
         जब घर भीतरि चोर पड़ेंगे, तब अंचलि किसकै लागेगा ॥
         कहै कबीर सुनहु रे सतौ, करि ल्यौ जे कछु करणां ।
         लख चौरासी जोनि फिरौंगे, बिनां रांम की सरनां ॥
       शब्दार्थ- जाति जाती = व्यर्थ जाते हुए । जीया = जीव । चरन = पावँ ।
   कर = हाथ । घारे = क्षीण हो गये, थक गये । आउ = आयु ।
       संदर्भ - कबीरदास जीव को रामभक्ति की ओर प्रेरित करते हैं ।
        भावार्थ - रे जीव! जीवन व्यर्थ जाते हुए देखकर भी यदि तूने भगवान 
   का नाम नहीं लिया तो बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा । संसार के धन्धो को करते-
   करते तेरे हाथ-पाँव दुर्बल हो गये है, आयु घटती जा रही है और शरीर क्षीण हो
   गया है । विषय-विकारो के प्रति तू सदैव अनुरक्त रहा और माया-मोह मे उलघ्न 
   रहा, अर्थात् मैं मेरा' के चक्कर में पड़ा रहा । रे जीव! जागजा । अज्ञान निद्रा
   में क्यों सो रहा है । आखिरकार इस अज्ञान-रूपी निद्रा को तू कब छोड़ेगा ?
   अर्थात् यदि अब भी नही जागा, तो आखिर कब जागेगा ? जब इस शरीर रूपी
   घर मे यम-दूत रूपी चोर तेरे जीवन को ले जाने के लिये घुस आँयेंगे, तब तू उस 
   समय अपने रक्षार्थ किसकी शरण मे जायेगा ? कबीर कहते हैं कि हे संतो ! सुनो
   जो कुछ भगवान-स्मरण करना है, उसे कर लो । राम की शरण मे गए बिना
   तुमको बार-बार जन्म लेकर चौरासी लाख योनियो मे निरन्तर भटकते रहना
   पड़ेगा ।
         अलंकार - (।)  पुनरुक्तिप्रकाश - जागि जागि ।
                 (॥)  रूपकातिशयोक्ति - घर चोर ।
                 (॥।) गूढ़ोक्ति - अचलि किसके लागेगा ।
         विशेश - 'निर्वेद' सचारी भाव की मार्मिक व्यजना है ।
                            (२४५)
           माया मोहि मोहि हित कीन्हां,
              ताथै येरौ ग्यांन ध्यांन हरि कीन्हां ॥ टेक ॥
           संसार ऐसा सुपिन जैसा, जीव न सुपिन समांन ।
           साँच करि नरि गांठि बांध्यौ, छाड़ि परम निधांन ॥
           नैन नेह पतग हुलसै पसु न पेखै आगि ।
           काल पासि जु मुगध बांध्या, फलंक कांमिनीं लागि ॥
           करि विचार विकार परहरि, तीरण तारण सोइ ।
           कहै कबीर रघुनाथ भजि नर, ढूजा नांहीं कोइ ॥
         शब्दार्थ - नारि = सासारिक प्रचप । हुलसै = उल्लसित होता है। पासि =
    बन्धन, फन्दा । परिहरि = त्याग दे । तोरण = तरणि, नौका । तारण = तारने
    वाला ।कलंक=कनक।