पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६६९

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कबीर हो जायेँ अथवा राम भक्ति के बिना समस्त साधनायेँ व्यर्थ है । मुर्ख लोग चाहे जितना उतना उनका पालन करें । सारा जप-तप झूठा है,सम्पुर्ण शास्त्र- ज्ञान व्यर्थ है । राम की भक्ति के बिना समस्त ध्यान एवं साधना झूठी है । शास्त्रों के द्वारा निर्धारित विधि-निपेध, पूजा-आचार का कोई अन्त नही है । ये सब नदी मे डुबा देने योग्य है। स्वार्थी व्यक्तियों ने इन्द्रियों के भोग एवं मन को प्रसन्न करने के लिये अनेक 'वादो' और पूजा पद्दतियों का विकास कर रखा है । कबीरदास कहते है कि इसी मे मैने समस्त भ्रमो को नष्ट करके और अन्य प्रकार कि साधनाओ से मुह्ँ मोड कर भगवान से अपना मन लगा दिया है ।

             अलंकार-गुढोक्ति एव्ण विशेपोक्ति की व्यजना-
             विशेष-- प्रथम चरण ।
             वाह्वाचर का विरोध है । सच्ची भक्ति का प्रतिपदन है ।
                           (२५३)
            चेतनि देखै रे जग घंघा ।
            रांम नांम का मरम न जांनै,माया कै रसि अंधा ॥ टेक ॥
            जनमत हीरू कहा ले आयो, मरत कहा ले जासी ।
            जैसे तरवर वसत पखेरू , दिवस चारि के वासी ॥
            आपा थापि अवर कौ निंदै, जन्मत हीं जड़ काटी ।
            हरि की भगति बिनां यहु देही धव लोटै ही फाटी ॥
            कांम क्रोध मोह मद मछर, पर अपवाद न सुणियें ।
            कहै कबीर साध की संगति, रांम नांम गुण भणियें ॥
  
      शब्दार्थ--वसत=बसते है । पखेरू=पक्षी । थापि= स्थापना करके,चधाई करके । 
 धव लौरे=देह घौलोरे =दौड धूप । फाटी=विदीर्ण हो गई, नष्ट हो गई । भणिये=कहिये ।
      सन्धर्भ--कबीर का कहना है कि जीव को संसार के प्रपच त्याग कर राम की            भक्ति करनी चाहिए ।
      भावार्थ-- हे जीव । तू केवल संसार के धन्धो के प्रति आसक्त है । अथवा रे जीव, तू जागकर क्यो नही देखता है कि यह संसार एक जाल है तू राम के नाम के वास्तविक मुल्य को नही जानता है और मायाजन्य सुखो मे लिप्त होकर वस्तविक स्थिति को न देखने के कारण अघा हो रहा है । जन्म के साथ तु अपने साथ कौन सा धन-वैभव लाया था और मरने पर अपने साथ क्या ले जायेगा ? जिस प्रकार पक्षी चार दिन के मेहमान की तरह वृक्ष पर चार दिन तक निवास करते है उसी प्रकार यह जीव ही इस संसार मे बहुत थोडे दिनों का मेहमान है । तू स्वयं अपनी तो प्रशंसा करता है और दुसरो की बुराई करता है । इस प्रकार अपने पराए की भावना अथवा द्व^तभाव धारण करके तूने जन्म के साथ