पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६७७

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रास सो खरो है कौन मोसो कौन खोटो ।

                           (गोस्वामी तुलसिदास)

(111) लह्ंग दरिया---ब्रह्माण्ड मे से स्त्रवित रस धारा को चर्वी का दरीया कह्ना युक्ति सगत ही है।एव्ं----- हैं स्त्रुति विदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहारै।

                             (२५६)  
      अलह रांम जीऊँ तेरे नाँई,
          बंदे ऊपरि सिहार करौ मेरे सांई । टेक ॥
      क्या ले साटि भुँइ सूं मारै, दया जल देह न्हवायें ।
      जोर करै ससकीन सतावै, गुन हीं रहै छिपाये ॥
      क्या तु जू जय भजन कीये,क्या मसीति सिर नांयें।
      रोजा करै निमाज गुजा  क्या हज काबै जांयें ।
      ब्रांह्माण ग्यारसि करै चौवीसौं, काजी सहरम जांन ।
      ग्यारह मास जुदे क्यू कीये, एकहि मांहि समांन ॥
      जौर खुदाइ मसीति बसत है, और मुलिक किस केरा ।
      तीरथ मूरति रांम निवासा, दुहु मै किनहू न हेरा ॥
      पूरीब दिसा हरी का वासा, पछिम अलह मुकांमा ।
      दिल हि खोजि दिलै दिल भींतरि, इहां रांम रहिमांनां ॥
      जेती औरति मरदां कहिये, सब मै रूप तुम्हारा ।
      कबीर पंगुड़ा अलह रांम का, हरि  गुर पीर हमारा ॥
     शब्दार्थ- नाई= नाम पर । बदे= सेवक पर, दास पर । मिहर= मेहर वानी । साई= स्वामी । मिट्टी= शरीर भु इ सू मारै=जमीन पर पटका जाए । जोर करै जुल्म करता है । मसकिन= दीन, दुखी । मजन= मज्जन, शरीर की अंतर्वाह्य शुद्धि के लिए मंत्र पढते हुए कुशादि से जल छिडकना । मसीति= मस्जिद । हज= हज्ज, नियत काल पर कावे के दर्शन और प्रदक्षिण करना, मक्के की यात्रा । काबा= मक्के की एक चौकोर इमारत जिसकी नीव इब्राहीम की रखी हुई  मानी जाती है । महरम= मुहर्रम, मुसलमानी साल का पहला महीना जिसकी दसवी तारीख को इमामहुसैन शहीद हुए थे । मुलिक= मुल्क, ससार । हेरा । प्ंगुडा= दास, सेवक ।
     सन्दर्भ- कबीर वाह्याचार की निरर्थकता बताते हुए भगवान की अनन्य भक्ति का प्रतिपादन करते हैं ।
     भावार्थ- हे अल्लाह । हे राम । मैं तुम्हारा नाम स्मरण करके जी रहा हूँ । हे मेरे स्वामी, अपने इस सेवक पर कृपा करो । जो व्यक्ति जुल्म करके दीन-दुखियो को सताता है और वाह्याचार (पूजा-पाठ आदिक) के द्वारा अपने अवगुणो को छिपाना चाहता है, उसका क्या किया जाए ? उसके शरीर को लेकर पृथ्वी पर