पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(५७)


मानवतावाद का आधारभूत या मूल सिद्धान्त है समस्त प्राणियों को 'आत्म' से भिन्न न समझना, समस्त जीवों में दया भाव का समान रूप से प्रसार करना, सबकी दुःख की अनुभूति को आत्मानुभूति बनाना, इसका प्रमुख कारण यह है कि सबका रचयिता एक ही है। एक ही अंश के सब अंशी हैं, फिर मानव-मानव के बीच यह विरोध कैसा? न कोई बड़ा है, न कोई छोटा, न कोई उच्च है, न कोई नीच। एक ही ईश्वर ने सबको जन्म दिया है। सब समान हैं। जाति-पांति का भेदभाव नहीं होना चाहिए। केवल कर्म से ही मनुष्य कुछ भी बन सकता है।

कबीर के शब्दों में:—

जाति न पूछो साधु की पूछो उसका ज्ञान।
मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान॥

भारतीय मानवतावाद की पृष्ठ भूमि में आध्यात्मिकता ही है। विदेशियों के भीषण आक्रमणों से भी भारतीय योगियों को शान्ति भंग नहीं हुईं। उनके यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि बिना किसी विध्न बाधा के चलते रहे। वे बाह्य संसार को छोड़कर व्यानावस्थित होकर आभ्यान्तरिक साधना में सलग्न रहे। आत्मा की स्वतंत्रता के आगे देश की स्वतन्त्रता का महत्व उनके मन में न बैठ सका। तथापि उन्होंने उसकी ओर ध्यान न दिया।

कबीर के युग में जब कि उत्तर पश्चिम से अनवरत रूप से आक्रमण हो रहे थे, भारतीय धर्म, साहित्य एव संस्कृति अत्याधिक संकट पूर्ण परिस्थितियों में स्वांस ले रही थी, और जबकि निराशा तिमिर भारतीय जनता को विनाश के गर्त का ओर उत्तरोत्तर अग्रसर कर रही थी। उस समय कबीर ने अपनी मधुर वाणी से जीवों को समता और एकता का संदेश दिया।

युग प्रवर्त्तक रामानन्द से प्रेरित और अनुप्राणित होकर सन्त कबीरदास ने मानवतावादी विचारधारा का प्रचार एवं प्रसार करने का प्रयत्न किया। इतना ही नहीं उन्होंने भारतीय चिन्तनधारा में एक नवीन परिच्छेद प्रारम्भ किया जिनके द्वारा समानता की भावना को प्रसार मिला। कबीरदास ने एक ऐसा मार्ग प्रशस्त किया जिस पर उनके अनन्तर आविर्भूत अन्य सन्तो ने चलकर समता का उपदेश भारतीय जनता को समय-समय पर सुनाया। इनकी प्रेरणा से हिन्दी के ज्ञानाश्रयी भक्त कवियों की एक शाखा चल पड़ी। ये सन्त सभी जातियों के थे, इनकी मूल भावना श्री "हरि का भजै सो हरि का होई।" जाति-पाँति के भेदभाव से इन्हें मोह न था‌ उन्होंने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में ललकार कर कहा कि सभी एक ही ब्रह्म की कृतियाँ है। सभी एक ही कुम्हार को रचना है। फिर 'को ब्राह्मण को सूझा' भेदभाव तो मन का मैल है।