पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६८१

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कबीर

        कहै कबीर मै जांनां, मै जांनां मन पतियानां ॥
        पतियानां जौ न पतीजै, तौ अंधै कू का कीजै ॥
      शब्दार्थ---गँवारा=अज्ञानी,मूर्ख । पच चोर= पाँच                 विकार(काम,क्रोध,लोभ,मद,मस्तर्) । 
  गढ=शरीर रूपी दुर्ग । मुहिकम=द्द्ढ, वस्तु । मति=बुद्धि। 
      सन्धर्भ---कबीरदास कहते है कि ज्ञान प्रप्ति के लिये मन की शुद्धि परम आवश्यक है ।
      भवार्थ---हे मुर्ख जीव । भगवान का नाम क्यो नही लेता है ? तू इस बारे मे बार-बार क्या सोचता है ? अथवा तू यह क्यो बार-बार सोचता है कि सांसारिक चिताओ से मुक्त होने के लिये क्या करना चाहिये । इस शरीर रूपी दुर्ग मे काम, क्रोध,लोभ,मद एवं मस्तर रूपी पाँंच चोर हैं । ये इसको   दिन-रात लूट रहे है । अगर दुर्ग क स्वामी मज़बूत हो, तो दुर्ग को कोइ नही लूत सकता है । अभिप्राय यह है कि ये पच विकार जीव की चेतना एव्ं स्व-स्वरूप-स्तिथि कि क्षमता को नष्ट कर रहे है । यदि जीव-चैतन्य अपने स्वरूप पे दृढता पूर्वक स्तिथ रहे, तो इसकी क्षमता को कौन नष्ट कर सकता है ? अविद्दा रूपी अन्धकार को नष्ट करने के लिये ज्ञान रूपी दीपक चहिये । उसी के द्वारा अगोचर परम तत्व की प्राप्ती होती है । इस परम तत्व के सक्षात्कार मे यह ज्ञान रूपी दीपक भी इसी परम तत्व मे समहित हो जाता है । अगर कोइ उस परम तत्व का सक्षात्कार करना चाहता है, तो उसे अपने अन्त करण रूपी दर्पण को स्वच्छ बनाये रखना चहिये । जब दर्पण के ऊपर मैल जम जाता है --जब अन्त करण मलिन हो जाता है, तब उस परम तत्व क सक्षत्कार नहीं होता है । पढने और मनन(स्वाध्याय) करने से क्या होता है ? वेद-पुराण सुनने से क्या होता है ? पढने एव्ं मनन करने से मतवाद रूपी अहंकार उत्पन्न हो जाता है और तब परम का सक्षत्कार सम्भव नही होता है । उसको साक्षात्कार मुझको तो सहज भाव से हो गया है । अथवा यह कहिये कि जो ज्ञान शास्त्राध्ययन से होना है, वह मुझे सहज ही प्राप्त हो  गया है और उस परम तत्व मे मेरी निष्ठा दृढ हो गई है । उस परम्  तत्व का ज्ञान प्राप्त होने पर उसके प्रति जिसके मन मे श्रद्धा-विश्वास दृढ नहीं होते हैं, उस अज्ञानी का क्या किया जाये ?
       अलंकार--- (१) रूपकतिशयोक्ति-चोर,गढ,गढपति,दीपक ।
                (२) रूपक--वस्तु अगोचर ।
                (३) विरोधाभास--अगोचर लहिये ।
                (४) पदमैत्री--दरसन दरपन ।
                (५) वकोक्ति--का पढियै--सुनिये ।
                (६) गूढोक्ति--अधै कू का कीजै ।
       विशेष--(१) वेद शास्त्र का विरोध है ।
             (२)काई--विपय-वासना ।