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कबीर

   एव सफल नाधन नही है ।) अत: भव-नागर मे डूबने से बचने के लिये कोइ अन्य उपाय करना चहिये जिससे तैर कर इसे पार करके दूसरे किनारे पहुँच सको । कबीर का उपदेश तो यही है कि राम-नाम के स्मरण की नाव तैयार करो जिससे उस भव-नागर को पार कर सको ।
            अलंकार---(१) गुढोक्ति--तब का--मुकन्दा ।
                    (२) रूपक---राम-नाम मेरा ।
            विशेष--(१) भक्ति का प्रतिपादन है । वही एक ऐसा साधन है जिससे भव-नागर को पार किया जा सकता है ।
                  (२) इस पद के अनुसार उच्च जति मे पैदा होने से नही उच्च कर्म करने से हि व्यक्ति उच्च बनता है ।
                  (३) पूरब जनम  पीन्हा-इन पन्क्तियों मे कर्म-फल सिद्धान्त एव पूनर्जन्म के भरतीय सिद्धान्त की स्पष्ट स्वीकृति है ।
                  (४) भक्ति ही उच्चतम कर्म है । यह व्यजित है ।
                  (५) मेरि जिन्या     गोविंदा--तुलना कीजिये----
               सिव-राम सरूप अगाध अनूप, विलोचन मीनन को जलु है ।
               ल ति राम कथा, मुज राम को नाम हिये पुनि रामहिं को बलु है ।
               मति रामहिं तो, गति रामहिं सो,रति राम सों रामहिं को बलु है ।
               सबको न कहै, तुलसो के मते, इतनो जग जीवन को फलु है ।
                                            (गोस्वमी तुलसीदास)
                                (२५१) 
              कहु पाडे सुचि कवन ठांव,
                       जिहि घरि भोजन बैठि खाउ ॥ तेक ॥
              माता जूठी पिता पुनि जूठा,जूठे फल चित लागे ।
              जूठा आंवन जूठा जांनां, चेतहु क्यु न अभगे ॥
              अंन जूठा पानी पुनी जूठा,जुठे जूठे जुठा खाया ॥
              चोक जुठा गोबर जुठा, जुठी की ढोकारा ।
              कहै कबीर तेइ जन सूचे,जे हरि भजि तजहिं बिकारा ॥
       शब्दार्थ--पाडे=पण्डिन । पुनि=पुनि=पवित्र । ठाउँ=स्नान । कारा=सेना, सेर ।                    सुरे= पवित्र । 
      कबीर कहते है कि भगवन भजन के अतिरिक्त सब कुछ