पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६८५

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[६५१ प्रन्थावली] ही अपनी जड काटती है अर्थात अपने उद्गम स्थल व्रहा से अपना सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया है। हरि की भक्ति बिना यह देह विषायो के पीछे दोड -धूप करते हुये नष्ट हो गई है। कबीरदास चेतावनी देते हुये कहते हैं कि हे जीव,तुम काम,क्रोध,मोह,मद और मत्सर की अोर ध्यान मत दे और साधुओ की सागति करो तथा राम के नाम का गुण्गाण करो। अलंकार-(१)उदाहरण-जैसे ॱॱॱॱ वासी।

     (२)वक्रोकित-जनमत ॱ जासी।

विशेष-(१)जड काटी,धव लौटे -मुहावरो का सुन्दर प्रयोग है। (२) व्य्क्ति को चाहिए कि संसार के प्रति आसत्क न होकर भगवान की भक्ति करे। साधु-संगति एव भगवनाम-स्मरण के द्वारा मित्यात्व का विश्वास होता है और उसके प्रति आस्तिक समाप्त हो जाती है।

(२५४)

रे जम नांहि नवै व्यौपारी, जे भरे जगाति तुम्हारी॥ टके । बसुधा छांडि बनिज हम किनहों,लाघो हरि को नांऊं। रांम रांम की गुंनि भराऊ,हरि के टांडै जांऊं॥ जिनकै तुम्ह अगिवानी कहियत, सो पूंजी हम पासा। अबै तुम्हरौ कछु बल नांही,कहै कबीरा दासा॥ शब्दार्थ-जगाति=पेशावर से आने वाले माल पर लगने वाला कर,आयात कर । गुनि=वोरा । टाडै=सार्थ,कारवाँ,काफिला । अगिवानी=आगे आगे चलने वाले । सन्दर्भ-कबीर ज्ञान प्राप्ति की दशा का वर्णन करते हैं। भावार्थ-हे यम हम वे व्यापारी नही है जो तुमहारी चुगी दैं । मैने सांसार के प्रति आस्तित्क का परित्याग करके आत्म-बोध मे जीवन लगाया है(निज व्यापार किया है)और मैने हरि नाम की खेप लादी है अर्थात मेरे मन-मानस मे हरि-नाम व्याप्त है। मैंने राम-नाम रूपी सामग्री से जन्म रुपी वोरी भर ली है और हरि भक्तो के काफिले (समूह)के साथ (मोक्षधाम)को जाऊँगा(जिन भगवान के नाम पर तुम जीवधारियो को लिवा ले जाने के लिये आते हो,वे उन भगवान की भक्ति रूपी पूँजी ही हमारे पास है (जिस पर तुमहारा कोई इजारा नही है) कबीर दास यमराज को सम्बोधित करके कहते हैं की अब हमारे ऊपर तुम्हारा कोई वश नही चलेगा(पिछ्ले जन्मो की बात अब नही रही है।) अलंकार-(१)रूपक -राम नाम की गुनि ।

     (२)गूढोकित-नाहिॱन व्यापारी।

विशेष-(१)जे धरे जगाति-अज्ञान के कर्म पाप-पुण्य होते हैं।उन्के अनुसार यम जीव का हिसाब-किताब लेकर उसको नरक-स्वर्ग भेजते हैं। परन्तु