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[कबीर ६८४]
(२५६)
अलह ल्यौ लांये काहे न रहिये,
अह निसि केवल राम नाम कहिये ॥ टके॥
गुरमुख़ि जलमां ग्यांन मुख़ि छुरी,हुई हलाल पंचू पुरी॥ मन मसीति मैं किनहूँ न जांनां, पच पीर मलिम भगवांनां ॥ कहै कबीर मै हरि गुन गाऊ, हिंदू तुरक दोऊ समझाऊँ॥