(५६)
पावक रूपी साइयां, सब घट रहा समाय।
चित चकमक लागे नहीं, ता ते बुझि बुझि जाय॥
मानवतावाद विषयक अपने विचारों के प्रसार के लिए कबीर ने सप्त महाव्रतों का उपदेश दिया, जिनसे मानव का व्यक्तिगत तथा समाजगत जीवन समुन्नत बनता है। (१) सत्य (२) अहिंसा (३) ब्रह्मचर्य (४) अस्वाद (५) अस्तेय (६) अपरिग्रह (७) अभय।
सत्य ही ज्ञान है, ब्रह्म है और संसार की वास्तविक गति है। कबीर से सत्य के प्रति बड़ी श्रद्धा प्रकट की है। सत्य व्यवहार, सत्य कर्म, सत्य वचन, सत्य अनुभूति जीवन को उदात्त बनाने में सहायक होती है और इस प्रकार मानव समाज सुखी और सम्पन्न बनता है। इसलिये कबीर ने कहा था—
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे, साँच है, ताके हिरदे आप॥
दूसरा महाव्रत है 'अहिंसा'। अहिंसा मानवतावाद की प्राण शक्ति है। जब तक हम हिंसा में लगे रहेंगे तब तक हम एक दूसरे के प्रति ममता की भावना की स्थापना कर ही नहीं सकते हैं।
कबीर की अहिंसा भावना बड़ी व्यापक है। वह तो यहाँ तक कहते हैं कि—
घट घट में वह साईं रमता,
कटुक बचन मत बोल रे॥
कबीर ने भय की भावना को भी उत्पन्न कराके अहिंसा व्रत पालन करने का उपदेश दिया है—
(१)
मास मास सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
आंख देख जे खात है, ते नर नरकहि जाय॥
(२)
बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल।
जे नर बकरी खात है तिनको कौन हवाल॥
अहिंसा के विषय में लिखते समय कबीर का अर्थ केवल 'बात न करना', 'जीव न मारना' हिंसा न करना ही नहीं है वरन् उस संकुचित क्षेत्र से बाहर आकर कटु वचन तक बोलने को उन्होंने मन किया है।
इसी प्रकार कबीर में ब्रह्मचार्य धारण करने का भी उद्देश दिया ब्रह्मचार्य जीवन के लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य इन्द्रियों का घेरा होता है। इन्द्रियों