पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७०५

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ग्रन्थावली ] (१११) माया वीनती करै- समभाव के लिए देखें-

    भागती फिरती थी दुनिया जब तलब करते थे हम ।
    अब जो नफरत हमने की,व्ह खुद बखुद आने को है ।

(१४) आठ सिद्धियाँ- योग सिद्धि से मिलने वाली आठ सिद्धियाँ या अलौकिक शक्तियाँ-अणिमा,महिमा,गरिमा,लछिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,ईशित्व और वशित्व। (५) नौ निधियाँ- कुबेर की नौ निधियाँ- पह्म, महापह्म, शख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील,और,खवं । (५१) कबीरदास माया के प्रति सदा सावधान रहने का उपदेश बराबर देते आए हैं। यथा-

        सुवटा । डरपत रहु मेरे भाई।
        या मजारी मुगध न मानै, सब दुनियाँ डहकायी।
        कहत कबीर, सुनहु रे सुवटा । डबरै हरि-सरनाई।
    कबीर ऐसे स्थलो पर ज्ञानी भक्त के रूप मे उभर कर एकदम सामने आ जाते हैं ।
                    (१७०)

तुम्हु घरि जाहु हंमारी बहनां,

          बिष लागै तुम्हारे नैनां ॥ टेक ॥

अंजन छाडि निरंजन राते, नां किसही का दैनां । बलि जांउ ताकी जिनि तुम्ह पठई, एक माइ एक बहनां ॥ राती खांडी देख कबीरा, देखि हमारा सिंगारौ । सरग लोक थै हम चलि आई, करन कबीर भरतारौ ॥ सर्ग लोक मै क्या दुख पडिया, तुम्ह आई कलि मांही । जाति जुलाहा नाम कबीरा, अजहू पतीजौ नांहीं ॥ तहां जाहु जहां पाट पटबर, अगर चंदन घमि लीनां । आइ हमारे कहा करौगी, हम तौ जाति कमींनां ॥ जिनि हम साजे साज्य निवाजे, बांधे काचै धागै । जे तुम्ह जतन करौ बहुतेरा, पांणीं, आगि न लागै ॥ साहिब मेरा लेखा मांगै, लेखा वयूं करि दीजै । जे तुम्ह जतन करौ बहुतेरा, तौ पांहण नीर न भीजै । जाकी मै मछी सो मेरा मछा, सो मेरा रखवालू । टुक एक तुम्हारै हाथ लगाऊ, तौ राजा रांम रिसालू ॥ जाति जुलाहा नाम कबीरा, बनि बनि फिरौं उदासी । आसि पासि तुम्ह फिरि फिरि वैसो, एक माड एक मासी ॥