पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७२०

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शब्दार्थ- निज निरखत = आत्म ज्ञान। गत=समाप्त। मूका=मुट्ठी (मुक्का)।बाभ = बिना ।

सन्दर्भ-कबीरदास ज्ञान-बोध की चर्चा करते है । भावार्थ - अब विवेक-विचार आदि की क्या आवश्यक्ता है? आत्म-स्वरूप का साक्षात्कार हो जाने पर सम्पूर्ण सांसारिक व्यवाहार (विधि-निषेध) समाप्त हो गए है। इस साधक रूपी पाचक जीव को परमात्मा रूपी एक ऐसा दाता मिल गया है जिसका दिया हुआ ज्ञान-भक्ति रूपी धन भोग करने पर भी समाप्त नहीं होता है। उस धन को कोइ अपनी मुट्ठी में भी नहीं भर सकता है अर्थात उसके ऊपर एकाविकार भी नहीं कर सकता है तथा उस धन को प्राप्त करने के पश्चात किसी अन्य के पास याचना करने के लिए जाने की आवश्यक्ता नहीं रह जाती है । अर्थात अन्य साधनाओ को अपनाने की आवश्यक्ता नहीं रह जाती है । उस घन के बिना जीवित नहीं रह जाता है । यदि वह धन मिल जाता है तो हमारे सासारिक अस्तित्व (अहम भाव) को मार कर समाप्त कर देता है । भक्ति पूर्ण यह जीवन ही अच्छा कहलाता है और बिना मरे इस जीवन की प्राप्ति नही होती है, अर्थात जब तक व्यक्ति का अहभाव (सासारिकता के प्रति आसक्ति) नहीं मर जाता है, तब तक वह भक्ति के आनद पूर्ण जीवन का अधिकारी नहीं बन पाता है। जब व्यक्ति भक्ति के चंदन को घिसकर ज्ञान और वैराग्य की अग्नि प्रकट करता है और उससे विषय विकारों के जगल को जला डालता है, तब उसको साधना रूपी नेत्रों के बिना ही सहज भाव से हृदय में भगवान का साक्षात्कार हो जाता है । वह भक्त एक उस पुत्र के समान है परमात्मज्ञान रूपी पिता को जन्म देता है तथा स्थान के बिना ही नगर बसा देता है अर्थात सासारिकता में लिप्त हुए बिना ही संसार के व्यवहार चलाता रहना है । जो जीवित रहते हुए मरना जानता है अर्थात शरीर को रखते होए सासारिकता (आसक्ति) का परित्याग करके संसार के लिए मृत हो जाता है, वही साधक पॉचो प्राणो द्वारा प्राप्त सामूहिक सुख का वास्तविक आनद प्राप्त करता है। कबिरदास कहते हैं कि भगवान की खोज में मैंने अपने ससारी रूप को नष्ट करके उस परम तत्व को प्राप्त किया है।

अलंकार-(1) वकोक्ति-अब् विचारा

    (11)  विशेपोक्ति- धन खाया ।
     (111) सम्वन्वातिशयोक्ति- कोई.  मूका ।
    (1\/)  विरोवाभास-तिरुवाभ  (चोन्सिदर) खाई, बिन मूबा' नाही,
      घसि बारा, तिहि जाया, जीवत ।  जानै तथा प्रभु भैटत '  गवाया ।
    (\/)  विभावना- विन  ' निहारा, बिन ठाहर'''' वभाया ।

विशेषा --(1) यह पद उलटवासी का है ।