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ग्रन्थावली ] [ ७२७

        (iii) असगति की व्यजना--इनके""""हमारा ।
    (iv)उदाहरण--ज्यूँ"" माना ।
    विशेष--(i)यन्त्र शरीर है चोर पच विकार है। नगर शरीर या मन है।
    (ii)कबीर के हृदय मे तो यह विश्वास् सुहढ जम गया है कि कुछ भगवान और गुरु हैं,वही हक हैं। जीवात्मा और परमात्मा अभिन्न है। जीवात्मा उस परम तत्व से कभी पृथक नही हो सकता। कबीर कहते हैं कि हमारा जीवात्मा परम तत्व से पूर्णत तदाकार हो गया है। अव्द्तवाद् का सुंदर प्रतिपादन है।
    (iii)जीव के निलिप्त भाव, अकर्तापन,समर्पण एव परम तत्व के विलय का सुंदर एव भवपूणॆ चित्रण हैं।
          
                 (२६३)
       मन रे आइर कहां गयौ
             ताथै मोहि बैराग भयौ ।।टेक।।
       पंच तत ले काया कीन्हीं, तत कहा ले कीन्हां।
       करमौं के बसि जीव कहत है, जीव करम किनि दीन्हां॥
       आकास गगन पाताल गगन, दसों दिसा गगन रहाई ले॥
       आनंद मूल सदा परसोतम, घट बिनसे गगन न जाई ले॥
       हरि मैं तन है तन मै हरि है, है सुनि नाही सोई॥
       कहै कबीर हरि नाम न छाडू, सहजे होई सो होई॥
       शब्दार्थ -गगन= शून्य अयवा चैतन्य।
       सन्दर्भ-कबीर परम तत्व की सर्वव्यापकता पर विचार करते हैं।
       भावार्थ- रे मन । तुम आकर कहा चले गये? अर्थात् इश्वारोंमुख मन स्थिति कहाँ चली गई? यह सोच कर कि मन अस्थिर एव चचल वस्तु है, मुझे इस मन के प्रति वैराग्य हो गया है। पच तत्वो (पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश) के दवारा इस शरीर का निर्माण हुआ है। परन्तु विचारणीय यह है कि उन पच तत्वों को कहा से निर्मित किया गया है? उनका मूल भूत कारन क्या है? कहा जाता है कि जीव कर्मो के वशीभूत रहता है। परन्तु जीव को कर्मो के वशीभूत किसने किया? आकाश के मूल मे गगन है, पाताल के मूल माय गगन है। तथा दशो दिशाओं मे भी वही गगन विराजमान है। इस प्रकार पुरुषोत्तम भगवान् ही शाश्वत अनन्द के मूल स्थान है। शरीर नष्ट होता है परन्तु उसका गगन तत्व नष्ट नहीं होता है। शरीर भगवान् मई है, एव शरीर मे भगवान् व्याप्त है। शरीर है भी और नहीं भी है (शरीर वास्तव मे नहीं है।) कबीर कहते है कि मै भगवान् का नाम स्मरण नहीं छोडूंगा। उससे जो जैसा होगा वैसा अपने आप हो जाएगा। अर्थात् जो तत्व जैसा है वहा तत्व सहज रूप मे वैसा ही है। उसका निरूपण करने माय वाणी असमर्थ है। वह सहज भाव से ही प्राप्य है। 
        अलकार --(1) गूढोक्ति -- पच तत्व        दीन्हा।