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कबीर ने समाज, साहित्य, धर्म सभी में प्रगतिशील विचारों का समावेश कर युग युग से पीड़ित एवं प्रताड़ित जनता का उद्धार किया। जिन विकृत तत्वों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया जाग्रत हुई, उनमें मुख्य तत्व ये हैं:—

(१) पुरोहितवाद, (२) वर्णाक्षम धर्म, (३) मूर्ति पूजा, (४) धार्मिक अन्धविश्वास, (५) वाह्याडम्बर, (६) पूजा विधि, (७) पौराणिकता।

हिन्दू धर्म के सामान्य विश्वास अपने मूल रूप में बड़े ही सात्विक थे, परन्तु मध्य युग तक आते-आते ये सात्विक विश्वास अन्धविश्वासों में परिणित हो गये थे, और उनका प्रचार धर्म के सभी क्षेत्रों में था। मध्य युगीन जनता के लिये ये विश्वास परम्परागत रूढ़ियों के रूप में बन कर रह गये थे कबीर की वाणी ने इन्हीं विकृत रूपों का खण्डन करने में प्रवृत्त हुई। आपसी द्वेष की राक्षसी प्रवृत्ति को रोक कर कबीर सत् धर्म की प्रतिष्ठा में कटिबद्ध हो गये। रक्तपात, भौतिकता, और प्रतिकार भावना के विरुद्ध उपदेश दिये। संध्या, वंदना, पंच महायज्ञ, बलि, श्राद्ध, षोड़श-संस्कार विविध प्रकार के व्रत, तीर्थ शौचा-शौच सम्बन्धी आचारों का खंडन किया जो कि केवल परम्परागत ही रह गये थे। कबीर साहित्य प्रगतिशीलता का प्रतीक है। प्रत्येक दृष्टि से कबीर का साहित्य प्रगतिशीलता के रंग में अनुरंजित है। काव्य के अन्तरंग एवं वहिरंग उभय पक्षों में कवि पूर्णतया प्रगतिशील हैं। क्या भाषा, क्या भाव, क्या रस, क्या छन्द हर दृष्टि से उन्होंने प्रयोग किये जो उनके युग की मान्यताओं को पुष्टता प्रदान करते हुए भविष्य के लिए मानदण्ड बन गये।

शाश्वतता

संत काव्य में मानव जीवन की अनेक शाश्वत प्रवृत्तियों की बड़ी सुन्दरता के साथ चित्रण हुआ। युग-युग से मनुष्य प्रेम, क्षमा, दया, विश्वबन्धुत्व और उदारता में विश्वास करता चला आ रहा है। मनुष्य सदैव से उदात्त वृत्तियों से युक्त रहा है। हीन कार्यों से हटकर हमारा मन स्वत शान्तिमय वातावरण में रमना चाहता है। कबीर के काव्य में मनुष्य को इन्हीं जन्म जात और शाश्वत प्रवृत्तियों पर जोर दिया गया है। मानव समाज के सबर्पमय वातावरण का परित्याग करके आध्यात्मिक वातावरण में सन्तोष प्राप्त करता है। कबीर ने आध्यात्म को प्रतिष्ठा के लिए बार-बार उपदेश दिया है। आध्यात्म का विषय शाश्वत और चिरंजीवी है, इसी कारण कबीर साहित्य शाश्वत साहित्य है।

कबीर साहित्य की रचना किमी स्वार्थ भाव से प्रेरित होकर नहीं की थी। उनकी रचनाएँ स्वान्तः सुखाय और 'बहुजन हिताय' हुई थीं। इसीलिए वे