पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७४१

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भावार्थ -यह हरि के भजन के कल्याणकारी प्रभाव का प्रमाण ही कि नीच व्यक्ति भी डके की चोट उच्च गद को प्राप्त हो जाता है। भगवान के भजन का ऐसा प्रभाव है कि पत्थर भी पानी मे तैरने लगते है। अघम भील (गुह निपाद,शबरी) एवं निम्न जाति की वेश्या भी विमान पर बैठकर वैकुण्ठं चले गये। नौ लाख तारों का समूह,चन्द्रमा और सूर्य सव निरंतर गतिशील बने हुए हैं, पर भक्त घ्रुव की पदवी अटल है-घ्रुवतारा अपने स्थान पर स्थिर बना रहता है, उसको अन्यान्य ग्रह नक्षत्रो की भाँति भ्रमित नही होना पडता है। वह भगवान राम के दरवार में उच्च आसन पर प्रतिष्ठित है। उसकी भक्ति की साक्षी वेद देते हैं तथा सत एव ज्ञानी सव उसका गुणगान करते हैं। कबीर कहते हैं कि हे भगवान, यह दास आपकी शरण मे आया है। उसका अपने चरणो मे स्थान दे दीजिए।

     अलकार- विरोघाभास-नीच पदवी।
     विशेष-(१)भील-केवट, गुह और निपाद एक ही व्यक्ति हैं। यह जाति का भील था। वनवास के समय इसने राम की बहुत सेवा की थी। उसकेप्रेमपूर्ण व्यवहार से प्रभावित होकर राम उसे भाई के समान मानने लगे थे।
     (२) गणिका- यह पिंगला नाम की वेश्या थी। एक वार श्रृंगार किए हुए आधी रात तक अपने प्रेमी की प्रतीक्षा करती रही ,परन्तु वह नही आया । इससे  उसके ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । उसको बड़ी आत्मग्लानी हुई । उसने वेश्यावृत्ति छोड़ दी , और वह भगवान का भजन करने लगी । कहते हैं कि एक बार तोते को 'राम'पढ़ते हुए उसको भगवान ने स्वर्ग भेज दिया था।
        अजाति- अनेक ऐसे भक्त हो गए है जिनका जन्म जाति अथवा मूढ योनि में हुआ था, परन्तु भजन के प्रभाव से वे स्वर्ग के अधिकारी हुए। इनमे कतिपय नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। यथा -कुबएर, जटायु, जामवन्त, बाल्मीकि ।
        घ्रुव- राजा उत्तानपाद के दो रानियाँ थी - सुनीति  और सुरुचि । सुनीति के घ्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। राजा सुरुचि को अधिक प्यार करते थे। इस कारण उनती उत्तम भी अधिक प्रिय था। एक दिन राजा उत्तानपाद उत्तम को गोद में खिला रहे थे । उसी समय घ्रुव भी वहाँ पहुंच गया और राजा की गोद में चढने का प्रयत्न करने लगा । यह देखकर सुरुचि ने व्यंग्य किया कि तप करने पर ही राजा की गोद में बैठने का सौभाग्य प्राप्त होता है । यह कहते हुए उसने घ्रुव को एक ओर घकेल दिया। घ्रुव रोता हुआ अपनी माता के पास पहूँचा और रोते हुए उसने अपने अपमान का हाल अपनी माता को सुनाया । माता ने भी उसको तप करके उच्च आसन प्राप्त करने की सलाह दी । घ्रुव ने कठोर तप करके भगवान के दर्शन किए और अटल पद प्राप्त किया।
     तिरे जल पाषाण- नील और नल दोनों वानर भाइयो को यह वरदान था कि उनके द्वारा स्पर्श किया  हुआ पत्थर डूबेगा नही । इन्ही दोनों ने लका पर