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रचनाओं में मानव-जीवन के हित की भावना अप्रत्यक्ष रूप से प्रवाहित होती हुई शताब्दियों से जनता को सही मार्ग पर अग्रसर कर रही है।

सजीवता

कबीर साहित्य की षष्ठ महान परम्परा सजीवता है। कबीर के प्रति यह आरोप लगाया जाता है कि वे पलायनवादी थे, और उन्होंने भारतीय जनता को पलायनवाद का हर प्रकार से पाठ पढ़ाया। जिसके फलस्वरूप भारतीय जनता अकर्मण्य बनती गई है। लेकिन तथ्य इसके विरुद्ध है। कबीर ने अपने युग की निराश जनता को आशा का प्रकाश दिखाया। उन्होंने भग्न हृदयों में उल्लास का संचार किया। जीवन को उन्होंने जीने योग्य बनाया और इस प्रकार से उन्होंने उदात्त एवं सात्विक जीवन का उपदेश देकर साहित्य के क्षेत्र में नवीन परम्पराओं को स्थापित किया। कबीर के काव्य में एक अलौकिक चेतना एवं सजीवता है। जिसकी आधारशिला आध्यात्मिक प्रणय की प्रतिष्ठा, आत्मानुभूतिगत माधुर्य, साधनात्मक रहस्यवाद और प्रतिभा आदि हैं। इन्हीं तत्वों ने कबीर के काव्य की में सजीवता एव माधुर्य का समावेश करके उसे सक्रिय बना दिया है।