पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७५६

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[ कबीर

   कि क्या खरीदना चाहिए और क्या नही खरीदना चाहिए । कबीरदास कहते हैं कि तुम इस संसार रूपी बाजार मे आकर तुमने लाभ का कुछ भी व्यापार नही किया अर्थात तुम शुभ कर्मो को अजंन बिल्कुल नही कर सकते ।
    अलंकार - (१) गूढ़ोक्ति -ले  सवारि ।
             (२)उपमा - जैसी धूँंवरि मेह , अजुरी कौ पानी ।
             (३)रूपकातिशयोक्ति -सेवल के फूलन ।
              (४)अनुप्रास -खोटी खाटै खरा
              (५)रूपक -हाटि । 
     विशेष - (१)प्रतीका का प्रयोग है -खोटी ,खरा ,वनिज ।
     (२)संसार की असारता का वर्णन है ।
      (३)विपय -लिप्त जीव की भर्त्सना की गई है ।
      (४)धूँंवरि मेह । समभाव की अभिव्यक्ति देखे-
              जग नभ -वाटिका रही है फलि रे ।
               धुवाँ फँसे घौरहर देखि तू न भूलि रे ।
                                         ( गोस्वामी तुलसीदास )
       (५)सेंवर के फूलन । समभाव के लिए देखें -
              सेमर सुअना सेइया मुह ढेंढी की आस ।
              ढेंढी फूट चटाक दै सुअना चला निरास ।         ( कबीर )
                      ( ३१४ )
        मन रे रांम नांमहि जांनि ।
        थरहरी थूनी परयो मदर सूतौ खूटी तांनि ॥टेक ॥
        सैन तेरी कोई न समझै ,जीभ पकरी आंनि ।
        पॉच गज दोवटी मॉगी ,चूंन लीयौ सांनि॥
        बसदर पाषर हॉडी , चल्यौ लादि पलांनि।
        भाई बघ बोलाई बहु रे , काज कीनौं आंनि ।
        कहै कबीर या मै झूठ नांहीं , छाडि जिय की बांनि ।
        रांम नांम निसंक भजि रे ,न करि कुल की कांनि ॥
    शब्दार्थ -घरहरी =हिलती हुई । थूनी =खम्भा । सूतौ =सोता है । खूँंटी तानि = वेफिऱी के साथ । सैन = इशारा ।वैसदर =अग्नि । पलानि =पलायन ।
    सन्दर्भ - कबीर समार की निस्सारता का वर्णन करते हैं ।
    भावार्थ - रे मन , तू राम -नाम से अपना नाता जोड। इस शरीर रूपी मन्दिर का प्राण -रूपी आधार स्तम्भ हिलने लगा है ।यह शरीर रूपी मन्दिर गिरने ही वाला है और तू निक्ष्चिन्त होकर सो रहे हो अर्थात् तुम्हे मौत का ध्यान ही नही है । अन्त समय का वर्णन करते हुए कबीर कहते हैं कि तेरी जीभ को यमदूतों ने आकर पकड लिया है अर्थात् तेरा बोल बन्द हो गया है तू अपना मन्तध्य प्रकट करने