पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७६४

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[कबीर ७६०]

   (४)ले मठी उडाना-समाधिस्थ चेतना द्वारा वह ब्रह्मलीन हो जाता है-
       झल उठी झोली जली खपरा फूटिम फूटि।
       जोगी था सो रमि गया, आसन रही विभूति।
               राग मारू
               (३२०)
   मन रे रांम सुमिरि,रांम सुमिरि,रांम सुमिरी भाई।
   रांम नांम सुमिरन बिनां बूड़त है अधिकाई ॥ टेक ॥
        दारा सुत ग्रेह नेह,सपति अधिकाई।
        यामै कछू नांहिं तेरौ,काल अवधि आई॥
        अजामेल गजा गनिका,पतित करम कीन्हां।
        तेऊ उतरि पारि गये,रांम नांम लीन्हां॥
        स्वांन सूकर काग कीन्हौ,तऊ लाज न आई।
        रांम नांम अमृत छाड़ि,काहे बिव खाई॥
        तजि भरम करम विधि नखेद,रांम नांम लेही।
        जन कबीर गुरू प्रसादि,रांम करी सनेही॥
   शब्दार्थ-नरवेद=निषेध। दारा=स्त्री। करम= कर्म काण्ड।
   संदर्भ-कबीर राम-नाम की महिमा का प्रतिपादन करते है।
   भावार्थ- रे मेरे भाई मन, राम का स्मरण करो, राम का स्मरण करो,

राम का स्मरण करो । राम नाम के स्मरण के बिना इस भव सागर मे और अधिक डूब जाओगे अर्थात् माया मोह मे अधिकाधिक लिप्त होते जाओगे। स्त्री,पुत्र,घर एव इनके प्रति स्नेह तथा अतुल सम्पत्ति इनमे तेरा कुछ भी नही है।अपना समय आने पर ये सब नष्ट हो जाएँगे ।अथवा तेरे जीवन की अवधि समाप्ति के निकट आ रही है और ये सब तुझ से छूत जाएँगे । अजामिल,हाथी और पिंगला श्रेश्या ने नीच कर्म किए। परन्तु राम का नाम लेने से वे भी संसार-सागर के पार हो गए। अर्थात् उनका भी उध्दार हो गया । रे जीव ,तुम कुत्ता,सूअर,कौआ आदी जैसी निम्न योनियो मे भटक चुके हो,परन्तु तुमको तब भी पाप कर्म करते हुए शर्म नही आती है। तुम राम भक्ति रूपी अमृत को छोडकर विषयासक्ति रूपि विष का सेवन करते हो।त तुम अन्य साधनाओ के द्वारा उध्दार की सम्भावना के भ्रम तथा कर्म काण्ड के विधि-निपेध को छोडकर राम के नाम का स्मरण करो। भक्त कबीरदास कहते हैं कि तुम गुरु की कृपा-प्राप्त करो और भगवान राम के प्रति अनुरक्त हो जाओ।

   अलंकार-(।)पुनरुक्ति प्रकाश-- राम सुमिरी की आवृत्ति ।
         (॥)गूढोक्ति--तेऊ पार--लीन्हा ।
         (॥।)रूपक-राम नाम अमृत ।