पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्रन्थवलो] [७६१

                   (IV) रूपकातिशयोक्ति - विष।
                    (V) पदमैत्री - भरम करम।
    विशेष - (।) कबीर ज्ञान भक्त के रूप मे प्रकट हैं।
     (॥) तजि करम विधि निषेद - कबीर शास्त्र विहित कर्मकाण्ड के प्रति विरोध प्रकट करते हैं।
     (॥।) पौरणिक आरकानो की परम्पर का प्रयोग है। यही कबीर वष्णव भक्त की परम्परा मे दिखाई देते है - 
             मै हरि पतित पावन सुन। 
             ब्याघ गनिका गज अजामिल साखि निगमन भने।
             और अवम अनेक तरे जत काप गने।
             जानि नाम अजानि लीन्हो नरक जमपुर मने।
             दस तुलसी सरन आयो, राखिये अपने।
                                       (गोस्वामी तुलसीदास)
(IV) प्रयुक्त पौराणिक आख्यान इस प्रकार है -
     अजामेल(अजामिल)- अजामिल एक व्राह्मण था। वह बडा पापी था। उसके पुत्र का नाम 'नारायण' था। मृत्यु के समय उसने अपने पुत्र 'नारायण' को नाम लेकर पुकारा। 'नारायण' की पुकार सुन्ते ही भगवान के दूत वहा आगए और यम्दूतो से उसको छुडाकर भगवान के घाम को ले गये। इस प्रकार भगवन्नाम स्मरण मात्र से अजामिल का उध्दार हो गया।
   (खा) गज(गजेन्द्र या गजराज) - हाथियो का एक अत्यन्त बलवान राजा था। उसे अपने बल का बडा घमण्ड था। एक बार जब वह नदी मे पानी पी रहा था, तब एक मगर ने उसका पैर पकड लिया। हाथि ने पूरा ज़ोर लगाया, परन्तु मगर ने उसका पैर नही छोडा। उलटे वह हाथी को जल के भीतर खीच ले गया। जब हाथी की सूड का ऊपरी भाग ही पानी के ऊपर रह गया, तब आते स्वर से उसने भगवान को पुकारा। उसकी पुकार सुन कर भगवान उसके रक्षाये भागे और उन्होने सुदशेन चक्र द्वारा मगर का वध करके गजराज का उध्दार किया।
   (ग) गनिका - यह पिंगला नाम की वेश्या थी। एक बार अपने व्यवसाय से निराश होकर उसने भगवान के भजन का सकल्प कर लिया और इसका उध्दार हो गया।
    इसकी कथा एक अन्य प्रकार भी है। यह वेश्या अपने तोते को राम-राम पढा रही थी। बस,इसी राम-राम उच्चारण से उसका उध्दार हो गया-सुवा पढावत गणिका तारी। तारी मीराबाई। इत्यादि।