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ग्रन्थावली]
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सुप्पनै बिंद न देई झरनां, ता काजी कूं जुरा न मरणां॥
सो सुलितांन जुद्वैै सुर तांनै, बाहरि जाता भीतरि आनै॥
गगन मंडल मै लसकर करैै, सो सुलितांन छत्र सिरि धरै॥
जोगी गोरख गोरख करै, हिंदू रांम नाम उच्चरै॥
मुसलमांन कहै एक खुदाइ कबीरा कौ स्वांमी घटि घटि रह्यौ समाइ॥

शब्दार्थ— हजूरि=समीप। दु दर=द्वन्द्व, भेदभाव। बाघ=वश मे करले, अपने नियंत्रण में करले। मुलना=मुल्ला, मसजिद में नमाज पढाने वाला। बिंद न देई झरना=काम के वशीभूत न होना। जुटा=जटा, वृद्धावस्था। सुलतान=बादशाह। लसकर=लशकर, सेना।

सन्दर्भ—कबीर पैगम्बरी मुसलमानो को उनकी सकुचित वृत्ति के प्रति सावधान करते हैं।

भावार्थ—रे मुल्ला, वह भगवान तो तेरे पास है। तुम उसको दूर (सातवें आसमान पर) क्यो बताते हो? जो अहकार जन्य भेद-भावना पर नियत्रण कर लेता है अर्थात् सम्प्रदाय-भावना के परे हो जाता है वहीं उस सुन्दर परम तत्व का साक्षात्कार करता है। असली मुल्ला वही है जो अपने मन के विकारों से सघर्ष करता है और रात-दिन काल चक्र से लडता है अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। जो काल चक्र का मान नष्ट कर देता है अर्थात् मृत्यु (मृत्यु के भय) को जीत लेता है, वह मुल्ला सदैव वदनीय है। वास्तविक काजी वही है जो अपने शरीर मे विद्यमान चैतन्य-तत्त्व का चिन्तन करता है और इस प्रकार रात-दिन ज्ञानाग्नि को प्रज्वलित करता रहता है। जो काजी स्वप्न मे भी वीर्यपात नहीं होने देता अर्थात् कभी भी काम के वशीभूत नहीं होता है, उसको न वृद्धावस्था सताती है और न मृत्यु ही उसको व्यापती है। वास्तविक बादशाह वहीं है जो अपने श्वास प्रश्वास रूपी दो स्वरो को नियत्रित रखता है और बाहर जाते हुए प्राणो को पूरक एव कुम्भक द्वारा भीतर ले जाता है, इस प्रकार नाव को ऊद्धर्व गति देते हुए युध्द करता है। वहीं सुलतान सिर पर छत्र धारण करता है, अर्थात् राज्य का अधिकारी बनता है, जो शुन्य मण्डल में जाकर अपना डेरा डाल देता है अर्थात् अपनी चेतना को ब्रह्मरन्ध में स्थित कर देता है। गोरखपथी योगी 'गोरख' जपता है, हिन्दू राम-नाम का उच्चारण करता है, मुसलमान कहते हैं कि उनका खुदा ही एक मात्र परमात्मा है, परन्तु कबीरदास कहते हैं कि उनका स्वामी (भगवान) प्रत्येक घट में समाया हुआ है अर्थात् वह सर्वव्यापी है।